वैकुंठ चतुर्दशी पूजा विधि | Vaikuntha Chaturdashi Puja Vidhi

नमस्कार मित्रों, इस लेख के माधयम से आप वैकुंठ चतुर्दशी पूजा विधि / Vaikuntha Chaturdashi Puja Vidhi PDF प्राप्त कर सकते हैं। वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान् श्री हरी विष्णु जी का पूजन किया जाता है। अतः जो भी व्यक्ति वैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत करता है उसके जीवन में चल रही विभिन्न प्रकार की समस्याओं का अंत हो जाता है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन पर भगवान् श्री भोलेनाथ जी का भी पूजन किया जाता है। यदि आपको अथवा आपके बालकों को किसी भी प्रकार का भय लगता है, तो वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान् श्री भोलेनाथ जी का पूजन करके किसी भी शिवालय में जल अर्पित करें। ऐसा करने से आपको मानसिक शांति का अनुभव होगा।

वैकुण्ठ चतुर्दशी पूजा विधि | Vaikunth Chaturdashi Puja Vidhi

  • इस त्योहार को पवित्र नदी में डुबकी लगाकर मनाया जाता है और इसे कार्तिक स्नान कहा जाता है.
  • ऋषिकेश में दीप दान महोत्सव मनाया जाता है.
  • चातुर्मास के बाद ये अवसर भगवान विष्णु के जागने का प्रतीक है.
  • पवित्र गंगा नदी पर आटे या मिट्टी के दीयों से बने हजारों छोटे-छोटे दीपक जलाए जाते हैं.
  • गंगा आरती भी की जाती है.
  • विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ से भक्त भगवान विष्णु को एक हजार कमल अर्पित करते हैं.
  • वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान विष्णु का विशेष सम्मान किया जाता है.
  • दोनों देवताओं भगवान शिव और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है क्योंकि वो एक दूसरे की पूजा कर रहे हैं.
  • भगवान विष्णु को प्रिय तुलसी के पत्ते शिव को और भगवान शिव को प्रिय बेल के पत्ते विष्णु को चढ़ाए जाते हैं.
  • गंगाजल, अक्षत, चंदन, फूल और कपूर आदि का भोग लगाया जाता है.
  • दीप जलाकर आरती की जाती है.
  • पूरे दिन व्रत रखा जाता है.
  • कुछ अन्य मंदिरों में भी ये त्योहार अपने पारंपरिक तरीकों से मनाया जाता है.

वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत की कथा | (Vaikuntha Chaturdashi Vrat Story

कथा 1
इस दिन को हरिहर का मिलन कहा जाता हैं . भगवान विष्णु वैकुण्ठ छोड़ कर शिव भक्ति के लिए वाराणसी चले जाते हैं और वहाँ हजार कमल के फूलों से भगवान शिव की उपासना करते हैं वे भगवान शिव की पूजा में तल्लीन हो जाते हैं और जैसे ही नेत्र खोलते हैं उनके सभी कमल फूल गायब हो जाते हैं तब वे भगवान शिव को अपनी एक आँख जिन्हें कमल नयन कहा जाता हैं वो अर्पण करते हैं, उनसे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट होते हैं और उन्हें नेत्र वापस देते हैं साथ ही विष्णु जी को सुदर्शन चक्र देते हैं . यह दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी का कहलाता हैं इस प्रकार हरी (विष्णु ) हर (शिव) का मिलन होता हैं .
कथा 2
एक धनेश्वर नामक ब्राह्मण था जो बहुत बुरे काम करता था . उसके माथे कई पाप थे . एक दिन वो गोदावरी नदी के स्नान के लिए गया उस दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी थी . कई भक्तजन उस दिन पूजा अर्चना कर गोदावरी घाट पर आये थे उस दिन भीड़ में धनेश्वर उन सभी के साथ था इस प्रकार उन श्रद्धालु के स्पर्श के कारण धनेश्वर को भी पूण्य मिला . जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसे यमराज लेकर गये और नरक में भेज दिया . तब भगवान विष्णु ने कहा यह बहुत पापी हैं पर इसने वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी स्नान किया और श्रद्धालु के पूण्य के कारण इसके सभी पाप नष्ट हो गये इसलिए इसे वैकुण्ठ धाम मिलेगा .
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