सूर्य ग्रहण पूजा विधि | Surya Grahan Puja Vidhi

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप सूर्य ग्रहण पूजा विधि | Surya Grahan Puja Vidhi PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिंदी धर्म ग्रंथों के अनुसार सूर्य ग्रहण की कथा को समुद्र मंथन से जोड़ा जाता है। समुद्रमंथन के उपरांत जब अमृत बाहर आया तो देवों व दानवों के मध्य अमृत पान को लेकर विवाद तथा युद्ध होने लगा। तब सभी देवों ने भगवान विष्णु जी से इस समस्या का समाधान करने को ने इस समस्या को सुलझाने के लिए निवेदन किया।
सूर्य ग्रहण पौराणिक कथा का पाठ करने से भगवान् श्री हरी विष्णु नारायण जी की कृपा प्राप्त होती है तथा उसके घर में धन – धान्य के भंडार सदा – सदा के लिए भर जाते हैं। सूर्य ग्रहण संसार के लिए एक बहुत ही बड़ी भौगोलिक व आध्यात्मिक घटनाएं होती हैं। यदि आप भी ग्रहण के दौरान सकरात्मक रहना चाहते हैं, तो पूजा विधि के अनुसार सूर्य ग्रहण पूजन अवश्य करें।

सूर्य ग्रहण पूजन विधि | Surya Grahan Ki Pujan Vidhi

  • एक चौकी बिछा कर उस पर सफेद वस्त्र बिछाएं
  • उस पर कनकधारा यंत्र को रख कर उसकी विधिवत पूजा करें।
  • इसके बाद ग्रहण के समय कनकधारा स्रोत का पाठ
  • करने से पूरे वर्ष के लिए लक्ष्मी का घर में वास हो जाता है।
  • इस समय भगवान महादेव के महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से व्यक्ति पर आया बड़े से बड़ा कष्ट भी बड़ी आसानी से टल जाता है।
  • ग्रहण के दौरान अपने गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का जप करने से सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
  • इस दिन अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध तथा तर्पण करें।
  • पांच मिनट की इस क्रिया में कोई ज्यादा रूपया-पैसा खर्च करने अथवा अनुष्ठान करने की आवश्यकता नहीं है वरन केवल जल, तिल आदि को उनके निमित्त देने मात्र से काम बन जाएगा।
  • इस दिन किया गया तर्पण पितरों को सौ वर्षों के लिए संतुष्ट कर देता है।
  • इससे कुंडली के सभी बुरे ग्रह विशेष तौर पर राहू, केतु, शनि तथा गुरु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र आदि का दान करें।
  • भैंरूजी के मंत्रों का जप करें।

सूर्य ग्रहण की कथा | Surya Grahan Katha

पौराणिक कथानुसार समुद्र मंथन के दौरान जब देवों और दानवों के साथ अमृत पान के लिए विवाद हुआ तो इसको सुलझाने के लिए मोहनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। जब भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग बिठा दिया।
लेकिन असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया। देवों की लाइन में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने राहु को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहु ने अमृत पान किया हुआ था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसी कारण राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रस लेते हैं। इसलिए चंद्रग्रहण होता है।

सूर्य स्तोत्र | Surya Stotram Lyrics in Sanskrit

विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।
लोक प्रकाशकः श्री माँल्लोक चक्षुर्मुहेश्वरः॥
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा।
तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः॥
गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः।
एकविंशतिरित्येष स्तव इष्टः सदा रवेः॥
‘विकर्तन, विवस्वान, मार्तण्ड, भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान, लोकचक्षु, महेश्वर, लोकसाक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्त्ता, तमिस्राहा, तपन, तापन, शुचि, सप्ताश्ववाहन, गभस्तिहस्त, ब्रह्मा और सर्वदेव नमस्कृत- इस प्रकार इक्कीस नामों का यह स्तोत्र भगवान सूर्य को सदा प्रिय है।’ (ब्रह्म पुराण : 31.31-33)
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