नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप सूर्य ग्रहण पौराणिक कथा / Surya Grahan Pauranik Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य ग्रहण की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। मंधन के बाद जब अमृत निकला तो देवों और दानवों के बीच अमृत पान को लेकर विवाद और युद्ध हो रहा था। तब भगवान विष्णु जी ने इस समस्या को सुलझाने के लिए उपाय निकाला।
सूर्य ग्रहण पौराणिक कथा का पाठ करने से भगवान् श्री हरी विष्णु नारायण जी की कृपा प्राप्त होती है तथा उसके घर में धन – धान्य के भंडार सदा – सदा के लिए भर जाते हैं। सूर्य ग्रहण संसार के लिए एक बहुत ही बड़ी भौगोलिक व आध्यात्मिक घटनाएं होती हैं। यदि आप भी ग्रहण के दौरान सकरात्मक रहना चाहते हैं, तो इस पौराणिक कथा का पाठ अवश्य करें।
सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा | Surya Grahan Ki Pauranik Katha
पौराणिक कथानुसार समुद्र मंथन के दौरान जब देवों और दानवों के साथ अमृत पान के लिए विवाद हुआ तो इसको सुलझाने के लिए मोहनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। जब भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग बिठा दिया।
लेकिन असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया। देवों की लाइन में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने राहु को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहु ने अमृत पान किया हुआ था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसी कारण राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रस लेते हैं। इसलिए चंद्रग्रहण होता है।
सूर्य नारायण की आरती | Surya Bhagwan Ki Aarti PDF
जय कश्यप-नन्दन,ॐ जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन – तिमिर – निकन्दन,भक्त-हृदय-चन्दन॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सप्त-अश्वरथ राजित,एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी,मानस-मल-हारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सुर – मुनि – भूसुर – वन्दित,विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर,दिव्य किरण माली॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सकल – सुकर्म – प्रसविता,सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन,भव-बन्धन भारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
कमल-समूह विकासक,नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरतअति मनसिज-संतापा॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
नेत्र-व्याधि हर सुरवर,भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत,परहित व्रतधारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सूर्यदेव करुणाकर,अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब,तत्त्वज्ञान दीजै॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
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