षटतिला एकादशी व्रत कथा | Shattila Ekadashi Vrat Katha

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप षटतिला एकादशी व्रत कथा / Shattila Ekadashi Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। हिन्दू वैदिक पंचांग के अनुसार प्रत्येक माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी के रूप में जाना जाता है।
षटतिला एकादशी के दिन विशेषतः भगवान श्री हरी विष्णु जी का पूजन किया जाता है । इस दिन भगवान विष्णु को तिल तथा तिल से बने पदार्थ अर्पित किए जाते हैं । षटतिला एकादशी के अवसर पर जो भी व्यक्ति पूर्ण विधि – विधान एवं भक्ति – भाव से भगवान श्री हरी विष्णु जी का तिल से पूजन करता है वह समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाता है ।

षटतिला एकादशी व्रत की कथा / Shattila Ekadashi Vrat Ki Katha PDF

प्राचीनकाल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह एक मास तक व्रत करती रही। इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया। यद्यपि वह अत्यंत बुद्धिमान थी तथापि उसने कभी देवताअओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान नहीं किया था। इससे मैंने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है, अब इसे विष्णुलोक तो मिल ही जाएगा परंतु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया, इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है।

भगवान ने आगे कहा- ऐसा सोचकर मैं भिखारी के वेश में मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उससे भिक्षा माँगी। वह ब्राह्मणी बोली- महाराज किसलिए आए हो? मैंने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में डाल दिया। मैं उसे लेकर स्वर्ग में लौट आया। कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी शरीर त्याग कर स्वर्ग में आ गई। उस ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला, परंतु उसने अपने घर को अन्नादि सब सामग्रियों से शून्य पाया।
घबराकर वह मेरे पास आई और कहने लगी कि भगवन् मैंने अनेक व्रत आदि से आपकी पूजा की परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है। इसका क्या कारण है? इस पर मैंने कहा- पहले तुम अपने घर जाओ। देवस्त्रियाँ आएँगी तुम्हें देखने के लिए। पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लो, तब द्वार खोलना। मेरे ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई। जब देवस्त्रियाँ आईं और द्वार खोलने को कहा तो ब्राह्मणी बोली- आप मुझे देखने आई हैं तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो।

उनमें से एक देवस्त्री कहने लगी कि मैं कहती हूँ। जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तब द्वार खोल दिया। देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है। उस ब्राह्मणी ने उनके कथनानुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया।
अत: मनुष्यों को मूर्खता त्यागकर षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिलादि का दान करना चाहिए। इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

षटतिला एकादशी व्रत पूजा विधि / Shattila Ekadashi Vrat Puja Vidhi in Hindi

  • सर्वप्रथम प्रातः उठ कर स्नान आदि कर्म करें ।
  • उसके बाद एक स्वच्छ स्थान पर एक लकड़ी की चौकी रखें ।
  • लकड़ी की चौकी पर एक पीला वस्त्र बिछाएँ ।
  • तत्पश्चात उसपर भगवान विष्णु की उरती अथवा चित्र स्थापित करें ।
  • अब भगवान विष्णु की पूजा प्रारंभ करें तथा निराहार व्रत का पालन करें । 
  • संध्याकाल में भगवान विष्णु का पूजन कर उन्हें तिल का भोग लगाएं तथा षटतिला एकादशी की व्रत कथा का पाठ व श्रवण करें।
  • भगवान विष्णु की प्रिय तुसली के समीप दीपक प्रज्वलित करें।
  • अगले दिन सूर्योदय के उपरांत व्रत का पारण करें।
  • इस दिन तिल का प्रयोग 6 तरीकों से किया जाता है। तिल स्नान, तिल का उबटन, तिल का हवन, तिल का तर्पण, तिल का भोग और तिल का दान।

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