शरद पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। धार्मिक कथाओं के अनुसार इस दिन चन्द्रमा पृथ्वी पर अमृत वर्षा करता है। इसीलिए बहुत से लोग इस दिन अपने घर पर खीर बनाते हैं तथा उसको रात भर चन्द्रमा की रौशनी में रखते हैं तथा सुबह उसे प्रसाद के रूप में परिवार वालों के साथ मिलबाँट कर कहते हैं।
माना जाता है कि इस खीर को खाने से व्यक्ति के विभिन्न प्रकार के रोग समाप्त होते हैं। चंद्रदेव की कृपा से व्यक्ति की मानसिक परशानियाँ भी दूर होती हैं। वैदिक धर्मशात्रों में कहा गया है, चन्द्रमा मनसोः जातः, अथार्त चन्द्रमा मन का करक होता है। यदि आप भी अपना मनोबल बढ़ाना चाहते हैं तो शरद पूर्णिंमा को पूज व व्रत अवश्य करें।
शरद पूर्णिमा की पूजा करने की विधि / Sharad Purnima Pooja Vidhi in Hindi
- इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। साथ ही किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें अथवा घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर नहाना चाहिए।
- फिर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
- इस पर मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें।
- मां लक्ष्मी को लाल फूल, नैवेद्य, इत्र जैसी चीजें चुढ़ाएं।
- फिर मां को वस्त्र, आभूषण, और अन्य श्रंगार पहनाएं।
- मां लक्ष्मी का आह्वान करें।
- फिर फूल, धूप (अगरबत्ती), दीप (दीपक), नैवेद्य, सुपारी, दक्षिणा आदि मां को अर्पित करें।
- इसके बाद लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। मां लक्ष्मी की आरती भी गाएं।
- फिर पूजा धूप और दीप (दीपक) से मां की आरती करें।
- फिर मां को खीर चढ़ाएं।
- इस दिन अपने सामार्थ्यनुसार किसी ब्राह्मण को दान करें।
- खीर को गाय के दूध से ही बनाएं।
- मध्यरात्रि को मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं।
- इसे प्रसाद के तौर पर भी वितरित करें।
- पूजा के दौरान कथा जरूर सुनें।
- एक कलश में पानी रखें और एक गिलास में गेहूं भरकर रखें।
- फिर एक पत्ते का दोना लें। इसमें रोली और चावल रखें।
- फिर कलश की पूजा करें और दक्षिणा अर्पित करें।
- मां लक्ष्मी के साथ भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा करें।
शरद पूर्णिमा मंत्र / Sharad Purnima Puja Mantra
मां लक्ष्मी मंत्र:
ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
कुबेर मंत्र:
ऊं यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।।
सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करने का मंत्र:
पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु में।
शरद पूर्णिमा व्रत कथा / Sharad Purnima Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक साहूकार था जिसकी दो बेटियां थीं। साहूकार की दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत करती थीं। जहां एक तरफ बड़ी बेटी ने विधिवत् व्रत को पूरा किया। वहीं, छोटी बेटी ने व्रत को अधूरा छोड़ दिया। इसका प्रभाव यह हुआ कि छोटी लड़की के बच्चों का जन्म होते ही उनकी मृत्यु हो गई। फिर एक बार बड़ी बेटी ने अपनी बहन के बच्चे को स्पर्श किया वो स्पर्श इतना पुण्य था कि उससे बालक जीवित हो गया। बस उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक किया जाने लगा।
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