नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप शनिवार व्रत पूजा विधि / Shanivar Vrat Puja Vidhi PDF प्राप्त कर सकते हैं। सप्ताह में शनिवार के दिन का अधिपति देव शनि महाराज को माना जाता है। प्रत्येक शनिवार को शनि देव चालीसा का पाठ और शनि देव की आरती करने से भी जीवन में सुख -शांति बनी रहती है। शनि महाराज व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं, इसीलिए इन्हें न्याय का देवता कहा जाता है। शनि की महादशा का सामना कर रहे व्यक्तियों को शनिवार का व्रत रखना चाहिए।
यदि कर्मों के फलदाता आपके पूजा से खुश हैं, तो आपके जीवन से दुखों का अंत हो जाएगा। शनि देव को काली वस्तुएं अत्यधिक प्रिय है, इसलिए शनिदेव को काले तिल, काला वस्त्र, तेल, उड़द आदि अत्यधिक प्रिय हैं। शनि देव की पूजा में इन वस्तुओं का उपयोग अवश्य करना चाहिए। जो भी लोग शनिवार का व्रत रखते हैं, वे इस शनिवार व्रत की कथा विधि और महत्व को यहां जान सकते हैं। शनि देव को प्रशन्न करने के लिए हमे शनि स्तुति भी करनी चाहिए और और शनि शाबर मंत्रो का जाप भी शनि देव को मनाने का एक अनूठा उपाय है।
शनिवार पूजा विधि | Shanivar Puja Vidhi PDF
- इस दिन प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान कर शनि देव का स्मरण करें।
- इसके बाद पीपल के वृक्ष पर जल अर्पित करना चाहिए।
- लोहे से बनी शनि देवता की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराना ।
- मूर्ति को चावलों से बनाए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें।
- इसके बाद काले तिल, फूल, धूप, काला वस्त्र व तेल आदि से पूजा करें।
- व्रत में पूजा के बाद शनि देव की कथा का श्रवण करें और दिनभर उनका स्मरण करते रहें।
- फिर अपनी क्षमतानुसार, ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा लौह वस्तु, धन आदि का दान करें।
- इस दिन व्यक्ति को एक ही बार भोजन करना चाहिए।
- इसके अलावा इस दिन चीटियों को आटा डालना फलदायी माना गया है।
- इस तरह शनि देव का व्रत रखने से दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में बदला जा सकता है तथा हर विपत्ति को दूर किया जा सकता है।
शनि स्तोत्र | Shani Stotram in Sanskrit PDF
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।1
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। 2
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते। 3
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने। 4
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च। 5
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते। 6
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:। 7
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्। 8
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:। 9
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।10
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