प्रिय भक्तों इस लेख के माध्यम से आप शैलपुत्री माता की कथा / Shailputri Mata Ki Vrat Katha PDF in Hindi के बारे में जान सकते हैं | मां शैलपुत्री ने अपने पिछले जन्म में देवी सती के रूप में अवतार लिया था। धर्मक उपनिषद में वर्णित एक कहानी के अनुसार, माता शालपुत्री ने हैमवती के रूप में देवताओं की महिमा की थी। देवी शैलपुत्री का जन्म हिमालय पर्वत के राजा की पुत्री के रूप में हुआ था। इसलिए इन्हें देवी शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा और व्रत किया जाता है। माता शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति आती है। माता शैलपुत्री का जीवन हमें तपस्या के महत्व के बारे में बताता है। उसने अपनी तपस्या के बल पर भगवान शिव से विवाह किया। मां शैलपुत्री की पूजा में माता शैलपुत्री व्रत कथा का बड़ा महत्व है।
शैलपुत्री माता की कथा । Shailputri Mata Ki Vrat Katha PDF in Hindi
एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा।
वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।
पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।
माता शैलपुत्री पूजा मंत्र / Mata Shailputri Pooja Mantra
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
नवदुर्गा पूजा संकल्प मंत्र / Navratri Puja Sankalp Mantra
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे
आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु
अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः
अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।
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