गया नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप श्री सरस्वती स्तोत्र PDF / Saraswati Stotram PDF प्राप्त कर सकते हैं। श्री सरस्वती स्तोत्र देवी सरस्वती को समर्पित के बहुत ही प्रभावशाली स्तोत्र है जिसके पाठ से आप माता सरस्वती जी की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं। श्री सरस्वती स्तोत्र की रचना मुख्यतः संस्कृत भाषा में की गयी है।
यदि आप सरस्वती माता को सीगढ़ प्रसन्न करना चाहते हैं तो देवी माँ के इस दिव्य स्तोत्र का नित्य प्रतिदिन पूर्ण भक्ति भाव से पाठ अवश्य करें। यदि आप कला के क्षेत्र में अपना स्थान बनाना चाहते हैं तो माता सरस्वती की आराधना करने से आप अपनी कला के क्षेत्र में नए किर्तिमान स्थापित कर सकते हैं।
सरस्वती स्तोत्र PDF / Saraswati Stotram PDF in Sanskrit
विनियोग
ॐ अस्य श्री सरस्वतीस्तोत्रमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः।
गायत्री छन्दः।
श्री सरस्वती देवता। धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः।
आरूढ़ा श्वेतहंसे भ्रमति च गगने दक्षिणे चाक्षसूत्रं वामे हस्ते च
दिव्याम्बरकनकमयं पुस्तकं ज्ञानगम्या।
सा वीणां वादयंती स्वकरकरजपैः शास्त्रविज्ञानशब्दैः
क्रीडंती दिव्यरूपा करकमलधरा भारती सुप्रसन्ना॥1॥
श्वेतपद्मासना देवी श्वेतगन्धानुलेपना।
अर्चिता मुनिभिः सर्वैर्ऋषिभिः स्तूयते सदा।
एवं ध्यात्वा सदा देवीं वांछितं लभते नरः॥2॥
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥3॥
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमंडितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकर प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥4॥
ह्रीं ह्रीं हृद्यैकबीजे शशिरुचिकमले कल्पविस्पष्टशोभे
भव्ये भव्यानुकूले कुमतिवनदवे विश्ववन्द्यांघ्रिपद्मे।
पद्मे पद्मोपविष्टे प्रणजनमनोमोदसंपादयित्रि प्रोत्फुल्ल
ज्ञानकूटे हरिनिजदयिते देवि संसारसारे॥5॥
ऐं ऐं ऐं दृष्टमन्त्रे कमलभवमुखांभोजभूते स्वरूपे
रूपारूपप्रकाशे सकल गुणमये निर्गुणे निर्विकारे।
न स्थूले नैव सूक्ष्मेऽप्यविदितविभवे नापि विज्ञानतत्वे
विश्वे विश्वान्तरात्मे सुरवरनमिते निष्कले नित्यशुद्धे॥6॥
ह्रीं ह्रीं ह्रीं जाप्यतुष्टे हिमरुचिमुकुटे वल्लकीव्यग्रहस्ते
मातर्मातर्नमस्ते दह दह जडतां देहि बुद्धिं प्रशस्ताम्।
विद्ये वेदान्तवेद्ये परिणतपठिते मोक्षदे परिणतपठिते
मोक्षदे मुक्तिमार्गे मार्गतीतस्वरूपे भव मम वरदा शारदे शुभ्रहारे॥7॥
धीं धीं धीं धारणाख्ये धृतिमतिनतिभिर्नामभिः कीर्तनीये
नित्येऽनित्ये निमित्ते मुनिगणनमिते नूतने वै पुराणे।
पुण्ये पुण्यप्रवाहे हरिहरनमिते नित्यशुद्धे सुवर्णे
मातर्मात्रार्धतत्वे मतिमतिमतिदे माधवप्रीतिमोदे॥8॥
ह्रूं ह्रूं ह्रूं स्वस्वरूपे दह दह दुरितं पुस्तकव्यग्रहस्ते
सन्तुष्टाकारचित्ते स्मितमुखि सुभगे जृम्भिणि स्तम्भविद्ये।
मोहे मुग्धप्रवाहे कुरु मम विमतिध्वान्तविध्वंसमीडे
गीर्गौर्वाग्भारति त्वं कविवररसनासिद्धिदे सिद्दिसाध्ये॥9॥
स्तौमि त्वां त्वां च वन्दे मम खलु रसनां नो कदाचित्यजेथा
मा मे बुद्धिर्विरुद्धा भवतु न च मनो देवि मे यातु पापम्।
मा मे दुःखं कदाचित्क्कचिदपि विषयेऽप्यस्तु मे नाकुलत्वं
शास्त्रे वादे कवित्वे प्रसरतु मम धीर्मास्तु कुण्ठा कदापि॥10॥
इत्येतैः श्लोकमुख्यैः प्रतिदिनमुषसि स्तौति यो भक्तिनम्रो
वाणी वाचस्पतेरप्यविदितविभवो वाक्पटुर्मृष्ठकण्ठः।
स स्यादिष्टार्थलाभैः सुतमिव सततं पाति तं सा च देवी
सौभाग्यं तस्य लोके प्रभवति कविता विघ्नमस्तं प्रयाति॥11॥
निर्विघ्नं तस्य विद्या प्रभवति सततं चाश्रुतग्रंथबोधः
कीर्तिस्रैलोक्यमध्ये निवसति वदने शारदा तस्य साक्षात्।
दीर्घायुर्लोकपूज्यः सकलगुणानिधिः सन्ततं राजमान्यो
वाग्देव्याः संप्रसादात्रिजगति विजयी जायते सत्सभासु॥12॥
ब्रह्मचारी व्रती मौनी त्रयोदश्यां निरामिषः।
सारस्वतो जनः पाठात्सकृदिष्टार्थलाभवान्॥13॥
पक्षद्वये त्रयोदश्यामेकविंशतिसंख्यया।
अविच्छिन्नः पठेद्धीमान्ध्यात्वा देवीं सरस्वतीम्॥14॥
सर्वपापविनिर्मुक्तः सुभगो लोकविश्रुतः।
वांछितं फलमाप्नोति लोकेऽस्मिन्नात्र संशयः॥15॥
ब्रह्मणेति स्वयं प्रोक्तं सरस्वत्यां स्तवं शुभम्।
प्रयत्नेन पठेन्नित्यं सोऽमृतत्वाय कल्पते॥16॥
॥इति श्रीमद्ब्रह्मणा विरचितं सरस्वतीस्तोत्रं संपूर्णम्॥
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