रोहिणी व्रत की पूजा विधि। Rohini Vrat Puja Vidhi PDF in Hindi

रोहिणी व्रत की पूजा विधि | Rohini Vrat Puja Vidhi Hindi PDF Download

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PDF Name रोहिणी व्रत की पौराणिक कथा
No. of Pages 4
Category Religion & Spirituality
Source coderegimetech.com
PDF Size 888 kb
Language Hindi
Download Link Yes
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नमस्कार दोस्तों, यदि आप रोहिणी व्रत की पौराणिक कथा / रोहिणी व्रत कथा पीडीएफ हिंदी में खोज रहे हैं और आपको यह कहीं नहीं मिल रही है तो चिंता न करें आप सही पेज पर हैं। 27  नक्षत्रों में से रोहिणी नक्षत्र भी एक है इस नक्षत्र को वैदिक महोत्सव में अत्यधिक महत्वपूर्ण मन गया हैं! इस नक्षत्र के नाम के कारण ही इस व्रत को रोहिणी व्रत के नाम से जाना जाता है रोहिणी व्रत को जैन धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

विद्वानों का कहना है की जैन धर्म में यह व्रत व्यक्ति की आत्मा की शुद्धि करता है और व्यक्ति द्वारा जाने – अनजाने पापो का विनाश करता है इस व्रत का बहुत अत्यधिक महत्त्व है इस व्रत के कारण अनेक प्रकार के रोगों का निवारण हो जाता है यदि आप भी जैन धर्म के अनुयायी है और अपनी आत्मा की शुद्धि करना चाहते है तो रोहिणी व्रत का पालन जरुर करे ।

रोहिणी व्रत की पौरोणिक कथा PDF / Jain Rohini Vrat Katha PDF

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में चंपापुरी नामक नगर में राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्‍मीपति के साथ राज करते थे। उनके 7 पुत्र एवं 1 रोहिणी नाम की पुत्री थी। एक बार राजा ने निमित्‍तज्ञानी से पूछा कि मेरी पुत्री का वर कौन होगा? तो उन्‍होंने कहा कि हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ तेरी पुत्री का विवाह होगा। यह सुनकर राजा ने स्‍वयंवर का आयोजन किया जिसमें कन्‍या रोहिणी ने राजकुमार अशोक के गले में वरमाला डाली और उन दोनों का विवाह संपन्‍न हुआ। एक समय हस्तिनापुर नगर के वन में श्री चारण मुनिराज आए। राजा अपने प्रियजनों के साथ उनके दर्शन के लिए गया और प्रणाम करके धर्मोपदेश को ग्रहण किया।

इसके पश्‍चात राजा ने मुनिराज से पूछा कि मेरी रानी इतनी शांतचित्त क्‍यों है? तब गुरुवर ने कहा कि इसी नगर में वस्‍तुपाल नाम का राजा था और उसका धनमित्र नामक एक मित्र था। उस धनमित्र की दुर्गंधा कन्‍या उत्पन्‍न हुई। धनमित्र को हमेशा चिंता रहती थी कि इस कन्‍या से कौन विवाह करेगा? धनमित्र ने धन का लोभ देकर अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण से उसका विवाह कर दिया, लेकिन अत्‍यंत दुर्गंध से पीडि़त होकर वह एक ही मास में उसे छोड़कर कहीं चला गया। इसी समय अमृतसेन मुनिराज विहार करते हुए नगर में आए, तो धनमित्र अपनी पुत्री दुर्गंधा के साथ वंदना करने गया और मुनिराज से पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा।

उन्‍होंने बताया कि गिरनार पर्वत के निकट एक नगर में राजा भूपाल राज्‍य करते थे। उनकी सिंधुमती नाम की रानी थी। एक दिन राजा, रानी सहित वनक्रीड़ा के लिए चले, सो मार्ग में मुनिराज को देखकर राजा ने रानी से घर जाकर मुनि के लिए आहार व्यवस्था करने को कहा। राजा की आज्ञा से रानी चली तो गई, परंतु क्रोधित होकर उसने मुनिराज को कड़वी तुम्‍बी का आहार दिया जिससे मुनिराज को अत्‍यंत वेदना हुई और तत्‍काल उन्‍होंने प्राण त्‍याग दिए। जब राजा को इस विषय में पता चला, तो उन्‍होंने रानी को नगर में बाहर निकाल दिया और इस पाप से रानी के शरीर में कोढ़ उत्‍पन्‍न हो गया। अत्‍यधिक वेदना व दु:ख को भोगते हुए वो रौद्र भावों से मरकर नर्क में गई। वहां अनंत दु:खों को भोगने के बाद पशु योनि में उत्‍पन्न और फिर तेरे घर दुर्गंधा कन्‍या हुई। यह पूर्ण वृत्तांत सुनकर धनमित्र ने पूछा- कोई व्रत-विधानादि धर्मकार्य बताइए जिससे कि यह पातक दूर हो। तब स्वामी ने कहा- सम्‍यग्दर्शन सहित रोहिणी व्रत पालन करो अर्थात प्रति मास में रोहिणी नामक नक्षत्र जिस दिन आए, उस दिन चारों प्रकार के आहार का त्‍याग करें और श्री जिन चैत्‍यालय में जाकर धर्मध्‍यान सहित 16 प्रहर व्‍यतीत करें अर्थात सामायिक, स्‍वाध्याय, धर्मचर्चा, पूजा, अभिषेक आदि में समय बिताए और स्‍वशक्ति दान करें।

इस प्रकार यह व्रत 5 वर्ष और 5 मास तक करें। दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक व्रत धारण किया और आयु के अंत में संन्यास सहित मरण कर प्रथम स्‍वर्ग में देवी हुई। वहां से आकर तेरी परमप्रिया रानी हुई। इसके बाद राजा अशोक ने अपने भविष्य के बारे में पूछा, तो स्‍वामी बोले- भील होते हुए तूने मुनिराज पर घोर उपसर्ग किया था, सो तू मरकर नरक गया और फिर अनेक कुयोनियों में भ्रमण करता हुआ एक वणिक के घर जन्म लिया, सो अत्‍यंत घृणित शरीर पाया, तब तूने मुनिराज के उपदेश से रोहिणी व्रत किया। फलस्‍वरूप स्वर्गों में उत्‍पन्‍न होते हुए यहां अशोक नामक राजा हुआ। इस प्रकार राजा अशोक और रानी रोहिणी, रोहिणी व्रत के प्रभाव से स्‍वर्गादि सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्‍त हुए।

रोहिणी व्रत पूजा विधि / Rohini Vrat Pooja Vidhi

  • सबसे पहले सुबह जल्दी उठना चाहिए।
  • स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए।
  • इसमें वासुपूज्य भगवान की पूजा की जाती हैं।
  •  उनकी पंचरतन, ताम्र या स्वर्ण की प्रतिमा की स्थापना करनी चाहिए।
  • पूजा के पश्चात फूल –  फल, वस्त्र और नेवेध का भोग लगाना चाहिए।
  • इस दिन गरीबों को दान करना चाहिए।
  • ऐसा माना जाता है की इस व्रत का पालन 3, 5 या 7 वर्षो तक निश्चित रूप से करना चाहिए।
  • इस व्रत का अधिक समय 5 महीने या फिर 5 साल मानी जाती है।

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