रविवार व्रत पूजा विधि | Ravivar Vrat Puja Vidhi

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप रविवार व्रत पूजा विधि / Ravivar Vrat Puja Vidhi PDF प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप रविवार के दिन सूर्य भगवान् का पूजन करते हैं, तो आपको शीघ्र ही भगवान् सूर्यदेव की कृपा प्राप्त होती है। सूर्यदेव अपने भक्त की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
यदि आप किसी भी प्रकार के जटिल रोग से बहुत लम्बे समय से पीड़ित हैं तथा उससे मुक्त होना चाहते हैं, तो रविवार के दिन सूर्य भगवान् की पूजा तथा व्रत अवश्य करें। रविवार के दिन व्रत करते समय रविवार व्रत कथा अवश्य पढ़नी चाहिए क्योंकि इस कथा को पढ़ने से ही इस व्रत को सफल माना जाता है।

रविवार व्रत की पूजा विधि | Ravivar Vrat Ki Puja Vidhi PDF

  • सूर्य का व्रत एक वर्ष या 30 रविवारों तक अथवा 12 रविवारों तक करना चाहिए।
  • रविवार को सूर्योदय से पूर्व बिस्तर से उठकर शौच व स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ लाल रंग के वस्त्र पहनें।
  • तत्पश्चात घर के ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान सूर्य की स्वर्ण निर्मित मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • इसके बाद विधि-विधान से गंध-पुष्पादि से भगवान
  • सूर्य का पूजन करें।
  • पूजन के बाद व्रतकथा सुनें।
  • व्रतकथा सुनने के बाद आरती करें।
  • तत्पश्चात सूर्य भगवान का स्मरण करते हुए ‘ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:’ इस मंत्र का 12 या 5 अथवा 3 माला जप करें।
  • जप के बाद शुद्ध जल, रक्त चंदन, अक्षत, लाल पुष्प और दूर्वा से सूर्य को अर्घ्य दें।
  • सात्विक भोजन व फलाहार करें। भोजन में गेहूं की रोटी, दलिया, दूध, दही, घी और चीनी खाएं।
  • रविवार के दिन नमक नहीं खाएं।

सूर्य नमस्कार के मंत्र | Surya Namaskar Mantra PDF

ॐ ध्येयः सदा सवितृमण्डल मध्यवर्ति ।

नारायणः सरसिजासन्संइविष्टः ।

केयूरवान मकरकुण्डलवान किरीटी ।

हारी हिरण्मयवपुधृतशङ्खचक्रः ॥

ॐ ह्रां मित्राय नमः ।

ॐ ह्रीं रवये नमः ।

ॐ ह्रूं सूर्याय नमः ।

ॐ ह्रैं भानवे नमः ।

ॐ ह्रौं खगाय नमः ।

ॐ ह्रः पूष्णे नमः ।

ॐ ह्रां हिरण्यगर्भाय नमः ।

ॐ ह्रीं मरीचये नमः ।

ॐ ह्रूं आदित्याय नमः ।

ॐ ह्रैं सवित्रे नमः ।

ॐ ह्रौं अर्काय नमः ।

ॐ ह्रः भास्कराय नमः ।

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः

ॐ श्रीसवितृसूर्यनारायणाय नमः ॥

आदितस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने ।

जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्र्यं दोष नाशते ।

अकालमृत्यु हरणं सर्वव्याधि विनाशनम् ।

सूर्यपादोदकं तीर्थं जठरे धारयाम्यहम् ॥

योगेन चित्तस्य पदेन वाचा मलं शरीरस्य च वैद्यकेन ।

योपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि ॥

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