नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप रथ सप्तमी व्रत कथा / Ratha Saptami Vrat Katha Hindi PDF प्राप्त कर सकते हैं। रथ सप्तमी को सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी, माघ सप्तमी तथा सूर्य जयंती आदि नामों से भी जाना जाता है। रथ सप्तमी व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है। रथ सप्तमी पर सूर्य उपासना का बहुत अधिक महत्त्व होता है।
वैदिक ज्योतिष में सूर्यदेव का बहुत अधिक विशेष स्थान है। यदि आपकी कुंडली में सूर्यदेव की महादशा अथवा अन्तर्दशा चल रही है तो आपको रथ सप्तमी के दिन पूर्ण श्रद्धा भाव से सूर्यदेव की उपासना करनी चाहिए ताकि आप कुंडली में उपस्थित दोष के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं से छुटकारा पाकर एक सुखी जीवन व्यतीत कर सकें।
रथ सप्तमी की व्रत कथा / Ratha Saptami Ki Vrat Katha Hindi PDF
कथा के अनुसार, एक राजा के पास अपना कोई उत्तराधिकारी नहीं था। संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी था। वह पूजा पाठ करता था और ऋषियों के बताए गए उपायों को भी करता था। वह हमेशा ईश्वर से संतान प्राप्ति का निवेदन करता था। उसकी मनोकामना पूरी हुई और उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ। कुछ समय के बाद उसका पुत्र बीमार हो गया। काफी इलाज कराने के बाद भी निरोग नहीं हुआ। तब उसे एक संत ने अचला सप्तमी का व्रत रखने तथा सूर्य देव की पूजा करने की सलाह दी। उस राजा ने माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी का व्रत रखा और विधि अनुसार पूजा की। उसके व्रत के प्रभाव से उसके पुत्र का स्वास्थ्य ठीक हो गया। बाद उसके पुत्र ने भी राज्य पर अच्छा शासन किया और लोकप्रिय हुआ।
सूर्य चालीसा PDF / Surya Chalisa in Hindi PDF
॥दोहा॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
॥चौपाई॥
जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!, सविता हंस! सुनूर विभाकर॥ 1॥
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन, मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥ 2॥
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥3॥
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते॥4
मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥5॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं, मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै, दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥6॥
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥7॥
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥8॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥9॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित, भास्कर करत सदा मुखको हित॥10॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥11॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥12॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥13॥
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे॥14॥
अस जोजन अपने मन माहीं, भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै॥15॥
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके॥16॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥17॥
परम धन्य सों नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥18॥
भानु उदय बैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता॥19॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥20॥
॥दोहा॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥
You can download Ratha Saptami Vrat Katha in Hindi PDF by clicking on the following download button.