प्रिय पाठकों, प्रस्तुत लेख में हम आपके लिए पितृ स्तोत्र pdf के विषय में जानकारी उपलब्ध करवा रहे हैं। जैसा की आप जानते हैं कि पितरों की संतुष्टि एक सुखी जीवन हेतु नितान्त आवश्यक है, अतः प्रत्येक व्यक्ति को श्राद्ध तर्पण आदि कर्म अवश्य करने चाहिए। श्राद्ध पक्ष में तो पितरों की पूजा अर्चना की ही जाती हैं किन्तु यदि आप दैनिक जीवन में भी उनका स्मरण करें तो निश्चित ही आपके जीवन में अनेक प्रकार की सफलताओं का आगमन होगा। पितृ स्तोत्र भी पितरों को स्मरण करने का एक सर्वाधिक सुलभ मार्ग है।
पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से न केवल पितरों को संतुष्टि और प्रसन्नता होती है अपितु वह आपके जीवन में आने वाले अनेक प्रकार के संकटों को भी हर लेते हैं। आपको पितृ दोष के निवारण हेतु किसी प्रकार के विशाल आयोजन करने की आवश्यकता नहीं होगी। आप मात्र पितृ स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करलें वही समुचित है।
पितृ स्तोत्र Lyrics PDF
अर्चितानाममूर्तानां पितॄणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान्नमस्यामिकामदान् ।।
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः।।
देवर्षीणां जनितुंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातॄन् नमस्येऽहं कृताञ्जलिः।।
प्रजापते: कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।
पितृ स्तोत्र का हिंदी भाषा में अर्थ व अनुवाद
जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ ।
जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ ।
जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ ।
नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।
जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।
प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।
सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ ।
चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ ।
अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है ।
जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ । उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों ।
।। इति पितृ स्त्रोत समाप्त ।।
पितृ स्तोत्र के लाभ
आईये जानते हैं की पितृ स्तोत्र के पाठ से मनुष्य को क्या – क्या लाभ होते हैं।
- पितृ स्तोत्र के नियमित पाठ से अनेक जन्मों के पितृ दोष का निवारण होता है।
- हेमन्त ऋतु के समय श्राद्ध में इसका पाठ करने से पितरों को बारह वर्ष तक तृप्ति होती है।
- शिशिर ऋतु में चौबीस साल तक तृप्ति प्रदान करता है
- वसंत ऋतु में सोलह साल तक तृप्ति प्रदान करता है।
- ग्रीष्म ऋतु में भी सोलह साल तक तृप्ति प्रदान करता है।
- वर्षा ऋतु में किया हुआ यह स्तोत्र का पाठ अक्षय तृप्ति प्रदान करता है।
- शरत्काल में किया हुआ इसका पाठ पन्द्रह साल तक तृप्ति प्रदान करता है।
- श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन अर्पित करते समय इस स्तोत्र का पाठ करने से यह पितरों को पुष्टि प्रदान करता है।
- यदि आप अपने घर में पितृ स्तोत्र भोजपत्र पर अंकित कर रखते हैं तो, आपके घर में पितृ श्राद्ध के समय में उपस्थित हो रहते हैं।
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