फाल्गुन अमावस्या कथा | Phalguna Amavasya Vrat Katha

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप फाल्गुन अमावस्या कथा / Phalguna Amavasya Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिन्दू वैदिक पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह में आने वाली अमावस्या तिथि को फाल्गुन अमावस्या के रूप में जाना जाता है। अमावस्या तिथि का धार्मिक रूप से बहुत अधिक महत्व होता है।
यदि आपकी कुंडली में किसी भी प्रकार का पितृदोष है तो आपको अमावस्या तिथि के अवसर पर अपने समस्त पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण अवश्य करना चाहिए। अमावस्या के दिन व्रत तथा दान – पुण्य अदि का भी विशेष महत्व होता है तथा ऐसा करने पर व्यक्ति के समस्त इच्छाएं पूरी होती हैं व पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

फाल्गुन अमावस्या कथा / Phalguna Amavasya Vrat Katha PDF

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दुर्वासा ऋषि ने क्रोध में आकर इंद्र और सभी देवताओं को श्राप दे दिया था। जिसके कारण सभी देवता कमजोर हो गए। इस मौके का फायदा उठाकर दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और उन्हें परास्त कर दिया। जिसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और भगवान विष्णु को इसके बारे में बताया तब उन्होंने देवाताओं को सलाह दी की वह दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करें।
जिसके बाद सभी देवताओं ने दैत्यों के साथ संधि कर ली और अमृत को प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने लगे। जब अमृत निकला तो इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। जिसके बाद दैत्यों ने जयंत का पीछा किया। जिसके बाद दैत्यों ने अमृत को प्राप्त कर लिया। अमृत को लेकर देवताओं और दानवों में बारह दिन तक युद्ध चला। जिसके कारण प्रयाग, हरिद्वार, उजैन और नासिक पर कलश से अमृत की बूंदे गिरी थी।
उस समय चंद्रमा, सूर्य, गुरु,शनि ने घट की रश्रा की थी। इस कलह को बढ़ते देख भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप रखा और देवताओं को छल से अमृत पीला दिया। इसी कारण से अमावस्या के दिन इन जगहों पर स्नान करना अत्यंत ही शुभ माना जाता है।

फाल्गनु अमावस्या की पूजा विधि / Phalguna Amavasya Puja Vidhi

  • फाल्गुन अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करना सबसे ज्यादा क्षेष्ठ माना जाता है। इससे पितरों को मुक्ति मिलती है।
  • इस दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान अवश्य करना चाहिए। इसके बाद बिना सीले वस्त्र धारण करने चाहिए।
  • इसके बाद यदि संभव हो तो किसी पुरोहित से तर्पण कराएं या फिर आप स्वंय भी तर्पण कर सकते हैं।
  • इसके बाद जहां पर आपके पितरों का स्थान है या फिर जहां पर उनकी तस्वीर लगी हुई है। उसके नीचे के स्थान को अच्छी तरह से साफ कर लें।
  • इसक बाद उस स्थान पर एक देशी घी का दीपक जला दें। इसके बाद अपने पूर्वज की तस्वीर पर सफेद चंदन का तिलक करें और उन्हें सफेद रंग के फूल अर्पित करें।
  • इसके बाद उनसे प्रार्थना करें कि हे पितृ देव हे मेरे पूर्वजों आज की रात मैं जो भी प्रार्थना करूं, जो भी पूजा करूं वह सफल हो।मुझे अपना आर्शीवाद प्रदान करें। जिससे मेरे सभी काम सफल हो।
  • इसके बाद उस सफेद कपड़े को पितरो के पूजा स्थान या फिर अपने पूर्वजों की तस्वीर के नीचे रख दें। इसके बाद उन्हें खीर और पूरी का भोग लगाएं।
  • ऐसा करने बाद हाथ जोड़कर उन्हें नमन करें और उनसे पूजा में हुई किसी भी भूल के श्रमा अवश्य मांगे।
  • इसके बाद किसी ब्राह्मण को भोजन अवश्य करांए और उन्हें वस्त्र और दक्षिणा देकर उनके पैर छूकर उनका आर्शीवाद लें।
  • अंत में पितरों को भोग लगाई खीर और पूरी को किसी गाय को खिला दें और उसमें कुछ को प्रसाद के रूप में परिवार के साथ ग्रहण करें।

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