नाज़ीवाद फासीवाद का ही एक उग्र रूप है जिसको हिटलर ने जर्मनी में विकसित किया। नाज़ीवाद के अंतर्गत राष्ट्रवाद को सर्वोचता प्रदान की गई है, रजनी पाम दत्त के अनुसार इटली में फासीवाद आने तक उदारवादी’ लोकतंत्रवादी और सामाजिक लोकतंत्रवादी हलकों में आमतौर पर यह माना जाता था कि फासीवाद और यहाँ का औद्योगिक सर्वहारा वर्ग मजबूत नहीं है, लेकिन जर्मनी यूरोप का सबसे उन्नत और औद्योगिक रूप से विकसित देश था और पूरे पूंजीवादी जगत में इससे संगठित और राजनैतिक रूप से सचेत औद्योगिक सर्वहारा और कही का नहीं था। यहाँ से आप बड़ी आसानी से Nazism and the Rise of Hitler in Hindi PDF / जर्मनी में नाजीवाद के उदय के कारण PDF हिंदी में डाउनलोड कर सकते हैं।
जर्मनी में नाज़ीवाद के उदय के कारण | Nazism and the Rise of Hitler in Hindi
वर्साय की संधि जहाँ जर्मनी के लिए एक सबसे शर्मनाक घटना थी जिसने वहां नाज़ीवाद को पनपने में काफी योगदान दिया ,वहीं उस समय जर्मनी में कुछ ऐसी घटनायें हो रही थीं जिसने इसे और मजबूत स्थिति प्रदान की। इसके पीछे आर्थिक मंदी, वाइमर गणतंत्र की असफलता, साम्यवाद का डर, यहूदी विरोधी नीति, जर्मनी के संविधान की कमियाँ और हिटलर का व्यक्तित्व जर्मनी में नाज़ीवाद के विकास के मुख्य कारण थे।
प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति वर्साय की संधि के साथ हुई, लेकिन यही वर्साय की संधि बाद में द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण भी बनी, वर्साय की संधि का सबसे ज्यादा विरोध जर्मनी की जनता ने किया, क्यूंकि इस संधि के तहत जर्मनी का निशस्त्रिकरण तो हुआ ही साथ ही जर्मनी को और कई कठोर शर्तों को मानना पड़ा। इस संधि के अनुसार उसे मित्र राष्ट्रों को युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए एक बड़ी रकम देनी थी। मित्र राष्ट्रों द्वारा राइन प्रदेश, तथा उसके उपनिवेशों को छीना जाना तथा फ्रांस द्वारा उसके खदानों पर कब्ज़ा करना आदि से जर्मनी की जनता बहुत नाखुश थी, हिटलर तथा उसकी नाज़ी पार्टी इसका विरोध करती थी, जिसके कारण उसकी पार्टी को जर्मनी में काफी समर्थन मिला।
प्रथम महायुद्ध के बाद यूरोप में एक भयानक आथिक संकट 1929 ई. में आया। इस आर्थिक मंदी ने जर्मनी की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ के रख दिया, रुर पर फ्रांसिसी कब्ज़े के कारण उसके उद्योग धंधे ठप हो गए तथा इस संकट के कारण जर्मनी की मुद्रा का अवमूल्यन हो गया और जर्मन मुद्रा मार्क का मूल्य घट गया। इसके कारण व्यापार और रोजगार का पतन हुआ, बेरोजगारो की संख्या वर्ष 1930 ई. तक आते आते जर्मनी में पचास लाख से अधिक पहुँच गई थी और यह वही समय था जब नाज़ी दल के सदस्यों की संख्या में असाधारण वृद्धि हुई। 1931 ई. में जर्मन कृषकों पर तीन अरब डॉलर का कर्ज था । हिटलर ने कृषकों को इन कर्ज से मुक्ति का अष्वासन दिया, वहीं दूसरी ओर छोटे-छोटे दुकानदारों को बड़े-बड़े दुकानदारों से मिल रही प्रतिस्पर्धा से हानि पहुँचती थी। हिटलर ने कहा कि बड़े-बड़े दुकानों का समाजीकरण कर दिया जायेगा, जिसके कारण नाज़ी दल के समर्थकों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई।
प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय के बाद वहाँ पर एक गणतंत्र की स्थापना की गई जिसे वाइमर गणतंत्र के नाम से जाना जाता है, वर्साय की संधि पर वाइमर गणतंत्र की सरकार ने ही हस्ताक्षर किया था, इस कारण से जर्मन लोगों ने इस सरकार को अंतरात्मा से नहीं स्वीकार किया, वहीं दूसरी ओर नाजियों द्वारा बिखराव और फूट पैदा करने से वाइमर गणतंत्र कमजोर हो रहा था, परिणाम यह हुआ की पूंजीवादी वर्ग और सामंती समाज का मुख्य हिस्सा नाजियों में जा मिला, हिटलर वर्साय की संधि और वाइमर गणतंत्र का विरोध करता था जिससे उसकी पार्टी को सत्ता में आने में लोगो का समर्थन मिला।
1917 ई. के रुसी क्रांति के बाद वहाँ साम्यवादी सरकार स्थापित होती है जिसके बाद पूरे यूरोप में समाजवाद लाने के लिए लगभग सभी यूरोपीय देशों में कमिन्टर्न की स्थापना की गई, जर्मनी में भी समाजवादी क्रांति लाने के लिये कमिन्टर्न की स्थापना हुई जिससे वहां के पूंजीपति एवं सामंती समाज पर खतरा मडराने लगा। इस बात की पुष्टि 1932 ई. के प्रथम लोकसभा निर्वाचन से होती है जिसमें साम्यवादियों को 89 (सीट) तथा इसी वर्ष दुसरे निर्वाचन में 100(सीट) स्थान प्राप्त हुए थे। इस कारण वहां के पूंजीपति वर्ग में समाजवाद का डर बढ़ जाता है। इसी दरम्यान हिटलर कमिन्टर्न विरोध का नारा देता है, साथ ही वह अपने कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर कमिन्टर्न कार्यालयों पर आक्रमण करना शुरू कर देता है, अब साम्यवादी आन्दोलन और प्रतिरोध को दबाने के लिए नाजियों को पुलिस और अदालत से संरक्षण मिलने लगता है, इसके बाद हम देखतें हैं कि हिटलर को जो पहले पूंजीपतियों द्वारा आंशिक मदद मिल रही थी वह अब जर्मन पूंजीपति के साथ साथ विदेशी बुर्जवा से भी मदद तथा धन प्राप्त होने लगता है।
हिटलर की यहूदी विरोधी नीतियों ने भी नाजियों को सता में आने में एक हद तक योगदान दिया, प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय के समय ही जर्मन जनता में यह भावना व्याप्त हो गई की जर्मनी की पराजय यहूदियों के कारण हुई थी, जर्मनी में यहूदियों की संख्या बहुत कम थी पर ये राजनैतिक रूप से काफी सचेत थे। व्यापार, व्यवसाय, शिक्षा और कला में काफी आगे थे, बड़े उद्योंगों पर इनका स्वामित्व होने से जनता इन्हें अपना शोषक मानती थी, हिटलर भी यहूदियों को उपर्युक्त कारणों के लिए जिम्मेदार मानता था और कहता था कि ये संकर जातियां है तथा ये राष्ट्रीय पतन का घोतक है, इसके साथ ही वह यहूदियों को उदारवाद तथा लोकतंत्र का पोषक मानता था इसलिए वो इनको जर्मनी से बाहर निकाल फेंकने की बात करता था, हिटलर यहूदियों की नागरिकता रद्द कर देता है, तथा सरकारी नौकरियों से हटा देता है, स्कूल और कॉलेजों में पढ़ रहे यहूदी छात्रों का नामांकन रद्द कर देता है, हिटलर की इस नीति के कारण वहाँ की जनता नाज़ी पार्टी की समर्थन करने लगती है।
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