नवरात्रि में नवमी का विशेष महत्व होता है। इस दिन नौ दिनों तक चलने वाले व्रत का समापन किया जाता है। अनेक भक्तगण इस अवसर पर कन्या पूजन करते हैं। हालाँकि बहुत से लोग कन्या पूजन अष्टमी के दिन भी करते हैं, किन्तु बहुत से लोग अपने नौ दिनों का समापन नवमी के दिन कन्या पूजन करने के बाद करते हैं।
यदि आप भी नवमी के दिन कन्या पूजन करने के बाद अपने व्रत का समापन करना चाहते हैं, तथा इस दिन दुर्गा पूजा करना चाहते हैं, तो नवमी व्रत कथा का पठान – पाठन अवश्य करना चाहिए। नवमी व्रत की सफलता हेतु इस कथा का बहुत महत्व है। इस कथा के माध्यम से आप देवी मां की महिमाओं के बारे में जान सकते हैं।
भक्तजनों को दुर्गा सप्ताशी के दिन दुर्गा सप्तशती कवच का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए। इसी तरह अष्टमी वाले दिन दुर्गा अष्टमी व्रत कथा को सुनना चाहिए। नवमी नवरात्रि का अंतिम दिन होता है इस दिन महानवमी व्रत कथा सुनकर कन्याओं(कंजकों) का पूजन कर के उनका भोग लगा कर ही व्रत को खोलना चाहिए। माँ दुर्गा को प्रशन्न करने के लिए भक्तजन विधि-विधान से दुर्गा माता का हवन भी कर सकते है। दुर्गा चालीसा का पाठ श्रद्धापूर्वक करने से करने से माता रानी बहुत प्रशन्न होती हैं।भक्त्जाओ को नौ दिन माता के भजन सुनकर और सुनाकर आनंदित रहना चाहिए। माँ दुर्गा के 108 नाम लेकर उनका ध्यान करना चाहिए और हमेशा उनका मनन करते रहना चाहिए।
महानवमी व्रत कथा / Mahanavami Vrat Katha
एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? इस व्रत का क्या फल है, इसे किस प्रकार करना उचित है? पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहिये।
बृहस्पतिजी का ऐसा प्रश्न सुन ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पते! प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। यह नवरात्र व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र की कामना वाले को पुत्र, धन की लालसा वाले को धन, विद्या की चाहना वाले को विद्या और सुख की इच्छा वाले को सुख मिलता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है। मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियां दूर हो जाती हैं और घर में समृद्धि की वृद्धि होती है, बन्ध्या को पुत्र प्राप्त होता है। समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है और मन का मनोरथ सिद्ध हो जाता है। जो मनुष्य इस नवरात्र व्रत को नहीं करता वह अनेक दुखों को भोगता है और कष्ट व रोग से पीड़ित हो अंगहीनता को प्राप्त होता है, उसके संतान नहीं होती और वह धन-धान्य से रहित हो, भूख और प्यास से व्याकूल घूमता-फिरता है तथा संज्ञाहीन हो जाता है। जो सधवा स्त्री इस व्रत को नहीं करती वह पति सुख से वंचित हो नाना दुखों को भोगती है। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और दस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा का श्रवण करे।
हे बृहस्पते! जिसने पहले इस महाव्रत को किया है वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूं तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्माण मनुष्यों का कल्याम करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहो मैं सावधान होकर सुन रहा हूं। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करो।
ब्रह्माजी बोले- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके संपूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने पिता के घर बाल्यकाल में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन जब दुर्गा की पूजा करके होम किया करता, वह उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती। एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल में लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और वह पुत्री से कहने लगा अरी दुष्ट पुत्री! आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा।
पिता का ऐसा वचन सुन सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिता! मैं आपकी कन्या हूं तथा सब तरह आपके आधीन हूं जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा से, कुष्टी से, दरिद्र से अथवा जिसके साथ चाहो मेरा विवाह कर दो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो अटल विश्वास है जो जैसा कर्म करता है उसको कर्मों के अनुसार वैसा ही फल प्राप्त होता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के आधीन है पर फल देना ईश्वर के आधीन है।
जैसे अग्नि में पड़ने से तृणादि उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं। इस प्रकार कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुन उस ब्राह्मण ने क्रोधित हो अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा-हे पुत्री! अपने कर्म का फल भोगो, देखें भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो? पिता के ऐसे कटु वचनों को सुन सुमति मन में विचार करने लगी- अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन वन में उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की।
दुर्गा नवमी का धार्मिक महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार, 5 नवरात्र हैं जो अश्विन, पौष, चैत्र, आषाढ़ और माघ हैं। इनमें से अश्विन नवरात्रि का बहुत महत्व माना जाता है और इसे पूरे देश में व्यापक रूप से मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि या दुर्गा पूजा उत्सव के रूप में भी जाना जाता है, ‘शक्ति’ के नौ अवतारों या रूपों की बहुत भक्ति के साथ पूजा की जाती है। महा नवमी पर, माँ सिद्धिदात्री, जो महा शक्ति के सर्वोच्च रूप हैं, की पूजा की जाती है। वह वह है जो राक्षस राजा महिषासुर का संहारक है।
नवमी पूजा विधि PDF / Navami Puja Vidhi PDF
महा नवमी पूजा, पूजा के अन्य दिनों की तरह, पवित्र शास्त्रों का पालन करती है। इसकी शुरुआत महास्नान और षोडशोपचार पूजा से होती है। देवी को गुलाबी फूल चढ़ाए जाते हैं और भक्त गुलाबी कपड़े पहनते हैं क्योंकि गुलाबी रंग महा नवमी के दिन का रंग है। कन्या पूजन या कुमारी पूजा का अत्यधिक महत्व है और यह कर्मकांडों का केंद्र है। 8-9 वर्ष की आयु की नौ युवा लड़कियों को पूजा मंच पर आमंत्रित किया जाता है और उनके पैर बहुत सावधानी से धोए जाते हैं। यह कन्या पूजा दुर्गा के 9 रूपों का प्रतीक है। पंडालों या मंदिरों में पुजारी द्वारा निर्देशित मंत्रों का जाप करते हुए लोग ‘पुष्पांजलि’ के माध्यम से प्रार्थना करते हैं। नवमी पूजा के अंत में नवमी होम बड़ी भक्ति के साथ किया जाता है। महा नवमी पूजा पवित्र शास्त्रों का पालन करेगी जो महास्नान और षोडशोपचार पूजा से शुरू होती हैं। इस विशेष दिन पर, भक्त जल्दी उठते हैं और कुछ लोग देवी के लिए उपवास भी रखते हैं।
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