इस अध्याय की रचना महाकवि देव (देवदत्त) जी ने की थी। “सवैया और कवित्त” नामक इस पाठ में भिन्न-भिन्न अद्भुत रचनाओं को संकलित किया गया है। हिंदी की ब्रजभाषा काव्य के अंतर्गत देव को महाकवि का गौरव प्राप्त है। उनका पूरा नाम देवदत्त था। उनका जन्म इटावा (उ.प्र.) में हुआ था। यद्यपि ये प्रतिभा में बिहारी, भूषण, मतिराम आदि समकालीन कवियों से कम नहीं, वरन् कुछ बढ़कर ही सिद्ध होते हैं, फिर भी इनका किसी विशिष्ट राजदरबार से संबंध न होने के कारण इनकी वैसी ख्याति और प्रसिद्धि नहीं हुई। इनके काव्य ग्रंथों की संख्या 52 से 72 तक मानी जाती है। उनमें से रसविलास, भावविलास, भवानी विलास और काव्यरसायन प्रमुख रचनाएँ मानी जाती हैं।
कवित्त (1)
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥
कक्षा 10 की क्षितिज पुस्तक के अध्याय 3 सवैया और कवित्तद से सम्बन्धित आवश्यक प्रश्न-उत्तर की पीडीऍफ़ आप नीचे दिए हुए लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं।