यदि आप कार्तिक मास में पूजन करना चाहते हैं तथा कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि PDF प्राप्त करना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए है। कार्तिक माह का पुराणों में बहुत अधिक महत्व है तथ इस माह में किये जाने वाले सतकर्म कई गुना फल देते हैं। कार्तिक माह में सभी देवगण अपने भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं। पूर्णिमा तिथि का अपने आप में ही बहुत अधिक महत्व होता है।
लेकिन कार्तिक माह में पूर्णिमा का जो स्थान है, उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। किसी भी प्रकार का पूजन करना हो तो उसे विधिपूर्वक करना ही उचित रहता है। जब तक पूजा पूर्ण विधि – विधान से न की जाये तब तक उसका कोई महत्व नहीं है। यदि आप भी घर पर यह पूजा करना चाहते हैं तो यहां से कार्तिक पूर्णिमा विधि पढ़ सकते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि / Kartik Purnima Pooja Vidhi
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदियों और कुण्डों आदि में स्नान करना चाहिए।
- अगर संभव ना हो तो घर पर नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान किया जा सकता है।
- फिर भगवान लक्ष्मी नारायण की आराधना करें।
- उनके समक्ष घी या सरसों के तेल का दीपक जलाकर विधिपूर्वक पूजा करें।
- ]साथ ही आप घर पर हवन कर सकते हैं।
- इसके बाद भगवान सत्यनारायण की कथा कहनी या सुननी चाहिए।
- अब उन्हें खीर का भोग लगाकर प्रसाद बांटें।
- शाम के समय लक्ष्मी नारायण जी की आरती करने के बाद तुलसी जी की आरती करें।
- साथ ही दीपदान भी करें।
- घर की चौखट पर दीपक जलाएं।
- कोशिश करें कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन किसी ब्राह्मण, गरीब या जरूरतमंद को भोजन करवाएं।
कार्तिक पूर्णिमा की कथा / Kartik Purnima Katha in Hindi
पौराणिक कथा के मुताबिक तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे – तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली…भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए।तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।
तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो।ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।
तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।
इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनी। चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बने। भगवान शिव खुद बाण बने और बाण की नोक बने अग्निदेव। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव।
भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।
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