होलिका दहन की कथा | Holika Dahan Ki Kahani

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप आमलकी होलिका दहन की कथा / Holika Dahan Ki Kahani PDF प्राप्त कर सकते हैं। होली का उत्सव भारत में बहुत अधिक धूमधाम से मनाया जाता है। होली रंगों का त्यौहार है तथा होली आने पर प्रकृति में चारों ओर उत्साह व उमंग का वातावरण होता है तथा प्रकृति भी प्रसन्नता से झूमती है।
होली न केवल भारत के समस्त राज्यों में अत्यधिक उल्लास से मनाई जाती है बल्कि होली का पर्व सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। होली से एक दिन पहले रात्रि में होलिका दहन किया जाता है जिसके अंतर्गत लकड़ी व गाय के गोबर से बने उपलों एक होलिका का निर्माण किया जाता है तथा उसका पूजन करने के उपरांत दहन किया जाता है।

होलिका दहन की कहानी / Holika Dahan Ki Vrat Katha PDF

होली का त्योहार विष्णु भक्त प्रह्रलाद, हिरण्यकश्यप और होलिका की कथा से जुड़ी हुई है। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप कठिन तपस्या करने के बाद ब्रह्राजी के द्वारा मिले वरदान से खुद को ही ईश्वर मानने लगा था। वह अपने राज्य में सभी से अपनी पूजा कराने लगा था।
उसने वरदान के रूप में ऐसी शक्तियां कर ली थी कि कोई भी प्राणी, कहीं भी, किसी भी समय उसे मार नहीं सकता था। किसी भी जीव-जंतु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य से अवध्य, न रात में न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर, न बाहर। कोई अस्त्र-शस्त्र भी उस पर असर न कर पाए।
हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का घोर विरोधी होने के बावजूद उसके यहां प्रह्राद नाम के पुत्र जन्म हुआ। प्रह्राद जन्म से भगवान विष्णु के परम भक्त थे।  भक्त प्रह्राद हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहा करते थे।
पिता हिरण्यकश्यप भक्त प्रह्ललाद की विष्णु उपासना से हमेशा क्रोघित रहते थे और बार-बार समझाने के बावजूद प्रह्राद विष्णुजी की आराधना नहीं छोड़ी। पिता हिरण्यकश्यप अपने पुत्र को मरवाने की हर कोशिश की, लेकिन भक्त प्रह्राद विष्णु भक्ति के कारण हर बार बच जाते।
अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन और भक्त प्रह्राद की बुआ होलिका को अपने पुत्र को मारने का आदेश दिया। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को एक वरदान प्राप्त था जिसमें वह कभी भी आग से नहीं जल सकती थी। इस मिले वरदान का लाभ उठाने के लिए हिरण्यकश्यप ने बहन से प्रह्राद को गोद में लेकर आग में बैठने का आदेश दिया, ताकि आग में जलकर प्रह्राद की मृत्यु हो जाए।
अपने भाई के आदेश का पालन करते हुए होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई लेकिन तब भी प्रह्राद भगवान विष्णु के नाम का जप करते रहे और भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका उस आग में जलकर मर गई।
हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है।
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