नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप होली गीत PDF / Holi Geet PDF प्राप्त कर सकते हैं। होली के उत्सव में होली गीत अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। बिना होली के रसिया गीतों के होलिका उत्सव की कल्पना भी नहीं की जाती है। भारत के विभिन्न राज्यों में होली के गीत पारम्परिक रूप से गाये जाते हैं।
होली गीतों के माध्यम से भगवान् श्री कृष्णा व राधा रानी की विभिन्न लीलाओं का भी वर्णन किया जाता है। वैसे तो होली का पर्व सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है किन्तु ब्रज क्षेत्र में इसका बहुत अधिक विशेष महत्त्व होता है। अतः आप भी ब्रज के इन होली गीतों का आनंद लेकर होली के त्यौहार को धूमधाम से मनाया जा सकता है।
होली लोक गीत इन हिंदी लिरिक्स PDF / Holi Geet Lyrics PDF
होली खेलन आया श्याम
होली खेलन आया श्याम
होली खेलन आया श्याम आज इसे रंग में बोरो री |
कोरे-कोरे कलश मँगाओ, केसर घोलो री
मुख पर इसके मलो, करो काले से गोरा री || होली खेलन ———
पास-पड़ोसन बुला, इसे आँगन में घेरो री
पीतांबर लो छीन, इसे पहनाओ चोली री || होली खेलन ———
माथे पे बिंदिया, नैनों में काजल सालो री
नाक में नथनी और शीश पे चुनरी डालो री || होली खेलन ———
हरे बाँस की बाँसुरी इसकी तोड़-मरोड़ो री
ताली दे-दे इसे नचाओ अपनी ओरी री || होली खेलन ———
लोक-लाज मरजाद सबै फागुन में तोरो री
नैकऊ दया न करिओ जो बन बैठे भोरो री || होली खेलन ———
चन्द्र्सखी यह करे वीनती और चिरौरी री
हा-हा खाय पड़े पइयाँ, तब इसको छोड़ो री || होली खेलन ———
शब्दार्थ: बोरो = डुबाओ, चिरौरी करे = गिड़गिड़ाए, हा-हा खाय = कान पकड़े, माफी माँगे
रसिया को नार बनाओ
रसिया को नार बनाओ री, रसिया को |
कटि-लहँगा, गल-माल कंचुकी, वाह रे रसिया वाह!
चुनरी शीश उढ़ाओ री, रसिया को || रसिया को नार —-
बाँह बरा बाजूबन्द सोहे, वाह रे रसिया वाह!
बाँह बरा बाजूबन्द सोहे,
नकबेसर पहनाओ री, रसिया को || रसिया को नार —-
गाल गुलाल दृगन बिच काजल, वाह रे रसिया वाह!
गाल गुलाल दृगन बिच काजल,
बेंदी भाल लगाओ री, रसिया को || रसिया को नार —-
आरसी-कंगन-छल्ला पहनाओ, वाह रे रसिया वाह!
आरसी-कंगन-छल्ला पहनाओ,
पैंजनी पाँव सजाओ री, रसिया को || रसिया को नार —-
श्यामसुंदर पे ताली बजा के, वाह रे रसिया वाह!
श्यामसुंदर पर ताली बजा के,
यशुमती निकट नचाओ री, रसिया को || रसिया को नार —-
शब्दार्थ: नकबेसर = नथ आदि, जो नाक में पहना जाए, दृग = आँख, यशुमती = यशोदा
मत मारे दृगन की चोट
मत मारे दृगन की चोट ओ रसिया, होली में मेरे लग जाएगी |
मैं बेटी वृषभान बाबा की, और तुम हो नन्द के ढोट
ओ रसिया, होली में मेरे लग जाएगी |
मुझको तो लाज बड़े कुल-घर की, तुम में बड़े-बड़े खोट
ओ रसिया, होली में मेरे लग जाएगी |
पहली चोट बचाय गई कान्हा, कर नैनन की ओट
ओ रसिया, होली में मेरे लग जाएगी |
दूजी चोट बचाय गई कान्हा, कर घूँघट की ओट
ओ रसिया, होली में मेरे लग जाएगी |
तीजी चोट बचाय गई कान्हा, कर लहँगा की ओट
ओ रसिया, होली में मेरे लग जाएगी |
नन्दकिशोर वहीं जाय खेलो, जहाँ मिले तुम्हारी जोट
ओ रसिया, होली में मेरे लग जाएगी |
शब्दार्थ: ढोट = बेटा, जोट = टक्कर का, जोड़ी
नैनन से मोहे गारी दई
नैनन से मोहे गारी दई, पिचकारी दई,
हो होली खेली न जाय, होली खेली न जाय |
काहे लंगर लंगुराई मोसे कीन्ही,
केसर-कीच कपोलन दीनी,
लिए गुलाल खड़ा मुसकाय, मोसे नैन मिलाए,
मोपे नेह लुटाय, होली खेली न जाय ||
जरा न कान करे काहू की,
नजर बचाए भैया बलदाऊ की,
पनघट से घर तक बतराय, मोरे आगे-पीछे आय,
मोरी मटकी बजाय, होली खेली न जाय ||
चुपके से आय कुमकुमा मारे,
अबीर-गुलाल शीश पे डारे,
यह ऊधम मेरे सासरे जाय, मेरी सास रिसाय,
ननदी गरियाय, होली खेली न जाय ||
होली के दिनों में मोसे दूनों-तीनों अटके,
शालिग्राम जाय नहीं हट के,
अंग लिपट मोसे हा-हा खाय, मोरे पइयाँ पर जाय,
झूटी कसमें खाय, होली खेली न जाय ||
शब्दार्थ: लंगर = नटखट लड़का, लंगुराई = शरारत, कान करे = बात नहीं सुनता,
बतराय = बात करे, गरियाय = गाली दे, बरजे = मना करे
कान्हा तुझे ही बुलाय गई
कान्हा तुझे ही बुलाय गई नथ वाली, कान्हा तोहे ही |
मुझे काहे को बुलाय गई नथ वाली, मोहे काहे को ?
होली खेलन को बुलाय गई नथ वाली, होली खेलन को |
उस नथ वाली का रूप बताय दे,
बड़े–बड़े नैना कजरा वाली, कान्हा तोहे ही |
उस नथ वाली का रंग बताय दे,
गोरा-गोरा रंग चटक साड़ी, कान्हा तोहे ही |
उस नथ वाली का गाँव बताय दे,
बरसाना गाँव बताय गई, कान्हा तोहे ही |
उस नथ वाली का नाम बताय दे,
राधा नाम बताय गई, कान्हा तोहे ही |
कान्हा तुझे ही बुलाय गई नथ वाली, कान्हा तोहे ही |
अरी होली में हो गया झगड़ा
अरी होली में हो गया झगड़ा, सखियों ने मोहन को पकड़ा |
धावा बोल दिया गिरधारी
नन्द गाँव के ग्वाले भारी
तक-तक मार रहे पिचकारी
आँख बचाकर कुछ सखियों ने, झट से मोहन पकड़ा || अरी होली में ——-
सखियों के संग भानुदुलारी
ले गुलाल की मुट्ठी भारी
मार रहीं हो गई अँधियारी
दीखे कुछ नहीं तब भी, सखियों ने मोहन को पकड़ा || अरी होली में ——-
सखा-भेष सखियों ने धारा
सब ने मिल के बादल फाड़ा
जाय अचानक फंदा डाला
छैला को कस कर जकड़ा, सखियों ने मोहन पकड़ा || अरी होली में ——-
नन्द के द्वार मची होली
नन्द के द्वार मची होली, बाबा नन्द के |
इधर खड़े हैं कुँवर कन्हैया-लाला
उधर खड़ी राधा गोरी, बाबा नन्द के || नन्द के द्वार….
पाँच बरस के कुँवर कन्हैया-लाला
सात बरस-की राधा गोरी, बाबा नन्द के || नन्द के द्वार….
हाथ में लाल गुलाल पिचकरा
मारत हैं भर बरजोरी, बाबा नन्द के || नन्द के द्वार….
सूरदास प्रभु तिहारे मिलन को
अविचल रहियो यह जोड़ी, बाबा नन्द के || नन्द के द्वार….
आज बिरज में होली
आज बिरज में होली रे रसिया
होली रे रसिया, बरजोरी रे रसिया || आज बिरज में ———–
इधर से आए कुँवर कन्हैया, इधर से आए कुँवर कन्हैया
उधर से राधा गोरी रे रसिया || आज बिरज में ———–
अपने-अपने घर से निकलीं, अपने-अपने घर से निकलीं
कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया || आज बिरज में ———–
किसके हाथ कनक पिचकारी, किसके हाथ कनक पिचकारी
किसके हाथ कमोरी रे रसिया || आज बिरज में ———–
राधा के हाथ कनक पिचकारी, राधा के हाथ कनक पिचकारी
श्याम के हाथ कमोरी रे रसिया || आज बिरज में ———-
कितना लाल-गुलाल मँगाया, कितना लाल-गुलाल मँगाया
कितनी मँगाई केसर रे रसिया || आज बिरज में ———–
सौ मन लाल-गुलाल मँगाया, सौ मन लाल-गुलाल मँगाया
दस मन केसर घोली रे रसिया || आज बिरज में ———–
उड़ा गुलाल लाल हुए बादल, उड़ा गुलाल लाल हुए बादल
केसर हवा में घुली रे रसिया || आज बिरज में ———–
बज रहे ताल मृदंग-झाँझ-ढप, बज रहे ताल मृदंग-झाँझ-ढप
और नगाड़ों की जोड़ी रे रसिया || आज बिरज में ———–
चन्द्रसखी भज बाल कृष्ण छवि, चन्द्रसखी भज बाल कृष्ण छवि
युग-युग जिए यह जोड़ी रे रसिया || आज बिरज में ———–
शब्दार्थ: कमोरी = कलश, मटकी
मेरा खो गया बाजूबन्द
(ऊधम ऐसा मचा ब्रज में, सब केसर रंग उमंगन सींचें
चौपद छज्जन छत्तन, चौबारे बैठ के केसर पीसें |
भर पिचकारी दई पिय को, पीछे से गुपाल गुलाल उलीचें
अरे एक ही संग फुहार पड़ें, सखी वह हुए ऊपर मैं हुई नीचे |
ऊपर-नीचे होते-होते, हो गया भारी द्वंद
ना जाने उस समय मेरा, कहाँ खो गया बाजूबन्द ||
हो मेरा, हो मेरा, हो मेरा)
हो मेरा खो गया बाजूबन्द रसिया, ओ रसिया होली में
होली में होली में होली-होली में, ओ रसिया होली में || मेरा खो गया —–
बाजूबन्द मेरा बड़े री मोल का, तुझसे बनवाऊँ पूरे तोल का
सुन!!!! सुन नन्द के परचन्द, ओ रसिया होली में || मेरा खो गया —–
सास लड़ेगी मेरी नन्द लड़ेगी, बलम की सिर पे मार पड़ेगी
तो!!!! तो हो जाय सब रस भंग, ओ रसिया होली में || मेरा खो गया —–
ऊधम तूने लाला बहुत मचाया, लाज-शरम जाने कहाँ धर आया
मैं तो!!!! मैं तो आ गई तोसे तंग, ओ रसिया होली में || मेरा खो गया —–
मेरी तेरी प्रीत पुरानी, तूने मोहन नहीं पहचानी
ओ मुझे!!!!! ओ मुझे ले चल अपने संग, ओ रसिया होली में || मेरा खो गया —–
शब्दार्थ: चौपद = चौराहा, छज्जन = छज्जे पर, छत्तन = छत पर, परचन्द = प्रचण्ड
और महीनों में बरसे–न-बरसे
टिप्पणी: होली के मस्ती और चुहल भरे गीतों के विपरीत यह एक शांत रस का अति मधुर गीत है जो सभी को लुभाता है। यहाँ गायिका समस्त देवी-देवताओं सहित बच्चे से लेकर 80 बरस के वृद्ध तक पर रंगो से रस टपकने की कामना करती हुई जब अंत में कहती है: जय बंसी वाले की, जय बंसी वाले की हम हू पे बरसे, तो हर कोई बरबस मुस्करा देता है।
और महीनों में बरसे–न-बरसे, फागुनवा में रस रंग-रंग बरसे |
कान्हा पे बरसे, और राधा पे बरसे
संग-संग !!!! ओ-हो संग-संग सब गोप-गोपिन पे बरसे || फागुनवा में —-
राम जी पे बरसे, और सीता जी पे बरसे
संग-संग !!!! ओ-हो संग-संग प्यारे हनुमत जी पे बरसे || फागुनवा में —-
शिव जी पे बरसे, और गौरा जी पे बरसे
संग-संग !!!! ओ-हो संग-संग प्यारे गणपति पे बरसे || फागुनवा में —-
विष्णु जी पे बरसे, और लक्ष्मी जी पे बरसे
संग-संग में शेषनाग पे बरसे || फागुनवा में —- —
ब्रह्मा जी पे बरसे, गायत्री जी पे बरसे
संग-संग !!!! ओ-हो संग-संग में चारों वेदों पे बरसे || फागुनवा में —- —
मथुरा पे बरसे, वृन्दावन पे बरसे
संग-संग !!!! ओ-हो संग-संग में बरसाने पे बरसे || फागुनवा में —-
बच्चों पे बरसे, जवानों पे बरसे
उन पे भी !!! ओ हो उन पे भी बरसे जो अस्सी बरस के || फागुनवा में —-
इन पे भी बरसे, और उन पे भी बरसे
जय बंसी वाले की !!!! जय बंसी वाले की हम हू पे बरसे || फागुनवा में —-
शब्दार्थ: हू = भी
कान्हा पिचकारी मत मार
कान्हा पिचकारी मत मार, चूनर रंग-बिरंगी होय |
चूनर नई हमारी प्यारे
हे मनमोहन बंसी वारे
इतनी सुन ले नन्द-दुलारे
पूछेगी वह सास हमारी, कहाँ से लीनी भिगोय || कान्हा पिचकारी —–
सबका ढंग हुआ मतवाला
दुखदाई त्योहार निराला
हा-हा करतीं हम ब्रजबाला
राह हमारी अब न रोक रे मैं समझाऊँ तोय || कान्हा पिचकारी ——
मार दीनी रंग की पिचकारी
हँस-हँस कर रसिया बनवारी
भीग गईं सारी ब्रजनारी
राधा ने हरि का पीतांबर खींचा मद में खोय || कान्हा पिचकारी ——
पन्ने के आरम्भ में जाएँ
कान्हा पिचकारी मत मारे
कान्हा पिचकारी मत मारे, मेरे घर सास लड़ेगी रे
सास लड़ेगी रे, मेरे घर नन्द लड़ेगी रे || कान्हा पिचकारी ——
सास डुकरिया मेरी बड़ी खोटी, गारी दे, ना देगी रोटी
द्योरानी-जिठानी मेरी जनम की दुश्मन, सुबह करेंगी रे || कान्हा पिचकारी ——
जा-जा झूठ पिया से बोले, एक की चार, चार की सोलह
ननद बिजुलिया जाय पिया के कान भरेगी रे || कान्हा पिचकारी ——
कुछ नहीं बिगड़े श्याम तुम्हारा, मुझे होएगा देश-निकाला
ब्रज की नारी दे ताली, मेरी हँसी करेंगी रे || कान्हा पिचकारी ——
हा-हा खाऊँ पडूँ तोरी पइयाँ, डालो श्याम मती गलबहियाँ
नाजुक मोतिन की माला मेरी टूट पड़ेगी रे || कान्हा पिचकारी ——
शब्दार्थ: डुकरिया = बुढ़िया, सुबह करेंगी रे (लड़ते-लड़ते, ) = बहुत लड़ेंगी
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