होली धमाल | Holi Dhamal

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप होली धमाल PDF / Holi Dhamal PDF प्राप्त कर सकते हैं। होली भारत में मनाया जाने वाला एक ऐसा उत्सव है जिसके आते ही सभी प्रसन्न हो जाते हैं तथा इस पर्व का मिल – बांटकर आनंद लेते हैं। भारत के विभिन्न राज्यों में होली के गीत गाने की एक लोक परंपरा है।
होली के अवसर पर गए जाने वाले गीत हुरियारों को उत्साहित तो करते ही हैं साथ ही साथ सुनने वालों को भी आनंदित करते हैं। यदि आप भी हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी होली के त्यौहार का आनंद लेना चाहते हैं तो इन भजनों का गायन कर सकते हैं तथा इन भजनों के सामूहिक आयोजन के माध्यम से होली का पर्व मना सकते हैं।

होली धमाल / Holi Dhamal PDF

होली खेल रहे नन्दलाल

होली खेल रहे नन्दलाल, वृन्दावन की कुंज गलिन में |

भर पिचकारी मोहे मारी, टीके की आब बिगारी

अरे मेरी !!! अरे मेरी बिंदिया हुई खराब, वृन्दावन की कुंज गलिन में |

होली खेल रहे ——-

भर पिचकारी मोहे मारी, चूनर की आब बिगारी

अरे मेरी !!! अरे मेरी चोली हुई खराब, वृन्दावन की कुंज गलिन में |

होली खेल रहे ——-

भर पिचकारी मोहे मारी, लहँगे की आब बिगारी

अरे मेरी !!! अरे मेरी तगड़ी हुई खराब, वृन्दावन की कुंज गलिन में |

होली खेल रहे ——-

भर पिचकारी मोहे मारी, पायल की आब बिगारी

अरे मेरे !!! अरे मेरे बिछिए हुए खराब, वृन्दावन की कुंज गलिन में |

होली खेल रहे ——-

भर पिचकारी मोहे मारी, गगरी की आब बिगारी

अरे मेरी !!! अरे मेरी ईंडुरी हुई खराब, वृन्दावन की कुंज गलिन में |

होली खेल रहे ——-

गोकुल के कृष्ण मुरारी जाऊँ तुम पे बलिहारी

अरे मेरी !!! अरे मेरी नीयत हुई खराब, वृन्दावन की कुंज गलिन में |

होली खेल रहे ——-

शब्दार्थ: बिगारी = बिगाड़ी, ईंडुरी = सिर पर पानी की मटकी को

टिकाने के लिए बनाई गई कपड़े की रिंग

खेलें मसाने में होरी दिगम्बर

खेलें मसाने में होरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, हो!!!!री |

भूत-पिसाच बटोरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, हो!!!!री |

गोप न गोपी न श्याम न राधा

ना कोई रोक न कोई बाधा

ना कोई साजन न गोरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, हो!!!!री |

लख सुन्दर फागुनी छटा के

मन से रंग गुलाल हटा के

चिता-भस्म भर झोरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, हो!!!!री |

नाचत-गावत डमरूधारी

भाँग पिलावत गौरा प्यारी (छोड़ें सर्प गरुड पिचकारी)

पीटें प्रेत ढपोरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, हो!!!!री |

भूतनाथ की मंगल होरी

देख-देख के रीझें गौरी

धन्य-धन्य नाथ अघोरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, हो!!!!री |

शब्दार्थ: मसाने = श्मशान, ढपोरी = ढपली

फाग खेलन बरसाने आए

फाग खेलन बरसाने आए हैं, नटवर नन्द्किशोर

नटवर नन्दकिशोर, नटवर नन्दकिशोर, फाग खेलन ——–

घेर लई सब गली रंगीली,

छाय रही सब छवि छवीली,

जिन अबीर, जिन अबीर, जिन अबीर,

गुलाल उड़ाए हैं, मारत भर-भर झोर, फाग खेलन ——–

सह रहे चोट ग्वाल ढालन पे,

केसर कीच मलैं गालन पे,

जिन हरियल, जिन हरियल, जिन हरियल

बाँस मँगाए हैं, चलन लगे चहुँ ओर, फाग खेलन ——–

भई अबीर घोर अँधियारी,

दीखत नाहिं कोई नर और नारी,

जिन राधे, जिन राधे, जिन राधे,

सैन चलाए हैं, पकरे माखन-चोर, फाग खेलन ——–

जुल-मिल के सब सखियाँ आईं,

उमड़ घटा अंबर पे छाई,

जिन ढोल, जिन ढोल, जिन ढोल

मृदंग बजाए हैं, बंसी की घनघोर, फाग खेलन ——–

जो लाला घर जानो चाहो,

तो होरी को फगुआ लाओ

जिन श्याम ने, जिन श्याम ने, जिन श्याम ने

सखा बुलाए हैं, नाचत कर-कर शोर, फाग खेलन ——–

राधे जू के हा-हा खाओ,

सब सखियन के घर पहुँचाओ

जिन घासीराम, जिन घासीराम पथ गाए हैं, लगी श्याम से डोर।

दिल की लगी बुझा ले

दिल की लगी बुझा ले री, तेरे रोज-रोज ना आवें

हँस-हँस फाग मना ले री, तेरे रोज-रोज ना आवें ||

मेरी राह से हट जा काले, तू तो रोज-रोज मँडरावे

मेरे मन से हट जा काले, तू तो रोज-रोज इठलावे ||

चटक-मटक है चार दिनों की,

फिकर न कर तू जग वालों की

संग नाच ले गा ले री, तेरे रोज-रोज ना आवें || दिल की लगी ——–

चटक-मटक तो रोज रहेगी, तुझसे मेरी नहीं बनेगी

नहीं नाचूँ नहीं गाऊँ रे, तू तो रोज-रोज मँडरावे ||

ऐसा समय नहीं फिर आवे, चूक जाए तो फिर पछतावे

हौले से नेक हौले से बतलाय री, तेरे रोज-रोज ना आवें ||दिल की लगी ——–

तेरी होली बारहमासी, करता डोले छिन-छिन हाँसी

मन का कपट मिटा ले रे, तू तो रोज-रोज मँडरावे ||

तुझको अपना पता बतावें, नन्द भवन में तुझे मिल जावें

एक बार आजमा ले री, तेरे रोज-रोज ना आवें ||दिल की लगी ——–

मै जानूँ तेरा पता-ठिकाना, नन्द बाबा का नाम लजाना

तुझसे मिले सोई पछतावे, तू तो रोज-रोज मँडरावे || दिल की लगी ——–

फागुन के दिन चार

फागुन के दिन चार रे, होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार।

बिन करताल पखावज बाजे, अनहद की टंकार रे

बिन सुर राग छतीसों गावे, रोम-रोम झंकार रे

होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥

शील-संतोष की केसर घोरी, प्रेम-प्रीत पिचकार रे

उड़त गुलाल लाल भयो अम्बर, बरसात रंग अपार रे

होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥

घर के सब पट खोल दिए हैं, लोक लाज सब ड़ार रे

मीरा के प्रभु गिरधर नागर, चरण-कमल बलिहार रे

होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥

रंग में होरी कैसे खेलूँ

रंग में होरी कैसे खेलूँ री, या साँवरिया के संग।

कोरे-कोरे कलश मँगाए,

कोरे-कोरे कलश मँगाए लाला, उनमें घोला रंग

भर पिचकारी मेरे सम्मुख मारी, भर पिचकारी मेरे सम्मुख मारी लाला

चोली हो गई तंग ॥ रंग में होरी ——-

सारी सरस सबरी मोरी भीजी,

सारी सरस सबरी मोरी भीजी लाला, भीजों सारो अंग

या दइमारे को कहाँ भिजोऊँ, या दइमारे को कहाँ भिजोऊँ लाला

कारी कामर अंग ॥ रंग में होरी ——-

तबला बाजे सारंगी बाजे,

तबला बाजे सारंगी बाजे लाला, और बाजे मिरदंग

कान्हा जू की बंसी बाजे, राधा जू के संग ॥ रंग में होरी ——-

घर-घर से ब्रज-वनिता आईं

घर-घर से ब्रज-वनिता आईं लाला, लिए किशोरी संग

चन्द्र्सखी हँस यों उठ बोली, चन्द्र्सखी हँस यों उठ बोली लाला

लगो श्याम के अंग ॥ रंग में होरी ——-

शब्दार्थ: दईमारा = कम्बख्त

ब्रज में हरि होरी मचाई

ब्रज में हरि होरी मचाई।

इत ते निकरीं सुघर राधिका, उत ते कुँवर कन्हाई

खेलत फाग परस्पर हिल-मिल, शोभा बरनी न जाई

घर-घर बजत बधाई, ब्रज में हरि होरी मचाई।

बाजत ताल मृदंग झांझ डफ, मंजीरा शहनाई

उड़त गुलाल, लाल भए बादल, केसरकीच मचाई

मानो इंदर झड़ी लगाई, ब्रज में हरि होरी मचाई।

नेक आगे श्याम

नेक आगे आ श्याम तोपे रंग डारूँ, नेक आगे आ

हाँ रे नेक आगे आ, हम्बै नेक आगे आ

नेक आगे आ श्याम तोपे रंग डारूँ, नेक आगे आ।

रंग डारूँ तेरे अंगन सारूँ, रंग डारूँ तेरे अंगन सारूँ लाला,

तेरे गालन पे, तेरे गालन पे, कुलचा मारूँ नेक आगे आ

नेक आगे आ श्याम तोपे रंग डारूँ, नेक आगे आ।

टेढ़ी रे टेढ़ी तेरी पगिया बाँधूँ, टेढ़ी रे टेढ़ी तेरी पगिया बाँधूँ लाला

तेरी पगिया पे, तेरो पगिया पे फुलड़ी डारूँ, नेक आगे आ

नेक आगे आ श्याम तोपे रंग डारूँ, नेक आगे आ।

ब्रज दूल्हा तू छैल अनोखा, ब्रज दूल्हा तू छैल अनोखा लाला

तोपे तन-मन-धन-जोबन वारूँ, नेक आगे आ

नेक आगे आ श्याम तोपे रंग डारूँ, नेक आगे आ।

शब्दार्थ: नेक = जरा, थोड़ा; कुलचा = बंद मुट्ठी से छोटी उँगली की तरफ से मारना; पगिया = पगड़ी

रंगीलो रंग डार गयो

डार गयो री, डार गयो री, रंगीलो रंग डार गयो री मेरी बीर।

तान दई मम तन पिचकारी,

फ़ट्यो कंचुकी चीर, रंगीलो रंग डार गयो री मेरी बीर।

चूनर बिगर गई जरतारी,

कसकत दृगन अबीर, रंगीलो रंग डार गयो री मेरी बीर।

जैसे-तैसे इन अँखियन से,

धोय तो डारो अबीर, रंगीलो रंग डार गयो री मेरी बीर।

मृदु  मुसकाय कान्ह नैनन के,

मारत तीर गंभीर, रंगीलो रंग डार गयो री मेरी बीर।

डार गयो री, डार गयो री, रंगीलो रंग डार गयो री मेरी बीर।

शब्दार्थ: बीर = सखी, जरतारी = जारी के तार वाली

अरी पकडौ री ब्रजनार

अरी पकडौ री ब्रजनार, कन्हैया होरी खेलन आयो है,

होरी खेलन आयो है, होरी खेलन आयो है, अरी पकडौ री ——-

संग में हैं उत्पाती बाल,

ऐंठ के चले अदा की चाल,

हाथ पिचकारी फेंट गुलाल

कमोरी, कमोरी रंगन की भर लायो है, अरी पकडौ री ——–

डारो मुख ऊपर रंग आज,

एक भी सखा जाय नहीं भाज,

लाज को होरी में क्या काज,

बड़े भागन से, बड़े भागन से फागुन आयो है, अरी पकडौ री ———

दई आज्ञा वृषभानु-दुलारी,

सब मिल पकड़ो कृष्ण मुरारी,

सखिन सब हल्ला खूब मचायो है, अरी पकडौ री ——–

पीताम्बर मुरली लई छिनाय,

श्याम को गोपी भेस बनाय,

राधा-रानी मन्द-मन्द मुसकाय,

श्याम को घूँघट मार नचायो है, अरी पकडौ री ———

रंग बाँको साँवरिया डार गयो

रंग बाँको साँवरिया डार गयो री,

डार गयो री, रंग डार गयो री,

रंग बाँको साँवरिया डार गयो री।

सारी सुरंग रंग जरतारी,

हो भर पिचकारी, मार गयो री

हो मोपे भर पिचकारी, मार गयो री

रंग बाँको साँवरिया —— ॥

बइयाँ पकर मोहे झकझोरी

हो झटक चुनरिया फार गयो री

ओ मेरी, झटक चुनरिया फार गयो री

रंग बाँको साँवरिया डार गयो री ॥

दृगन अबीर गुलाल गाल मल

हँस-हँस सैन चलाय गयो री

ओ वो तो, हँस-हँस सैन चलाय गयो री

रंग बाँको साँवरिया डार गयो री ॥

होली खेल रहे बाँके बिहारी

होली खेल रहे, होली खेल रहे, हाँ-हाँ होली खेल रहे,

बाँके बिहारी, आज रंग बरस रहा।

और झूम रही, और झूम रही, और झूम रही,

दुनिया सारी, आज रंग बरस रहा ॥

अबीर-गुलाल के बादल छा रहे,

ओ होरी है, होरी है शोर मचा रहे,

ओ मुट्ठी भर-भर के, भर-भर के, भर के,

गुलाल की मारी, आज रंग बरस रहा ॥ और झूम रही ——

देख-देख सखियों के मन हरषा रहे,

ओ मेरे बाँके बिहारी आज रंग बरसा रहे,

उनके संग-संग में, संग-संग में, संग में,

हैं राधा प्यारी, आज रंग बरस रहा ॥ और झूम रही ——

आज नन्दलाला ने धूम मचाई है,

ओ प्रेम भरी होली की झलक दिखाई है,

ओ रंग भर-भर के, भर-भर के, भर-भर के,

मारी पिचकारी, आज रंग बरस रहा ॥ और झूम रही ——

अबीर गुलाल और टेसू को रंग है,

ओ वृन्दावन-बरसाना झूम रहा संग है,

ओ मैं बार-बार, बार-बार, बार-बार,

जाऊँ बलिहारी, आज रंग बरस रहा ॥ और झूम रही ——:

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