दोस्तों आज हम आपके लिए लेकर आयें Gurur Purnima Vrat Katha Hindi PDF / गुरु पूर्णिमा व्रत कथा PDF। हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। नारदपुराण के अनुसार यह पर्व आत्मस्वरूप का ज्ञान पाने के अपने कर्तव्य की याद दिलाने वाला और गुरु के प्रति अपनी आस्था जाहिर करने वाला होता है। गुरू पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरूजनों को समर्पित परम्परा है जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने, बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हों। इसको भारत, नेपाल और भूटान में हिन्दू, जैन और बोद्ध धर्म के अनुयायी उत्सव के रूप में मनाते हैं। इस पोस्ट में आप बड़ी आसानी से Guru Purnima Vrat Katha Hindi PDF / गुरु पूर्णिमा व्रत कथा और पूजा विधि PDF डाउनलोड कर सकते हैं।
Gurur Purnima Vrat Katha Hindi PDF / गुरु पूर्णिमा व्रत कथा PDF
पौराणिक कथा के अनुसार, वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश स्वरूप कलावतार हैं। इनके पिता का नाम ऋषि पराशर था। जबकि माता का नाम सत्यवती था। वेद ऋषि को बाल्यकाल से ही अध्यात्म में रुचि थी। इसके फलस्वरूप इन्होंने अपने माता–पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की और वन में जाकर तपस्या करने की अनुमति मांगी, लेकिन उनकी माता ने वेद ऋषि की इच्छा को ठुकरा दिया।
तब इन्होंने हठ कर लिया, जिसके बाद माता ने वन जाने की आज्ञा दे दी। उस समय वेद व्यास के माता ने उनसे कहा कि जब गृह का स्मरण आए तो लौट आना। इसके बाद वेदव्यास तपस्या हेतु वन चले गए और वन में जाकर कठिन तपस्या की। इसके पुण्य प्रताप से वेदव्यास को संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई।
इसके बाद इन्होंने वेदों का विस्तार किया और महाभारत, अठारह महापुराणों सहित ब्रह्मसूत्र की भी रचना की। इन्हें बादरायण भी कहा जाता है। वेदव्यास को अमरता का वरदान प्राप्त है। अतः आज भी वेदव्यास किसी न किसी रूप में हमारे बीच उपस्थित हैं।
गुरु पूर्णिमा पूजा विधि | Guru Purnima Pooja Vidhi
इस दिन प्रातः काल में उठकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान ध्यान करें। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब घर में पूजा स्थान पर व्यास–पीठ बनाकर निम्न मंत्रों से गुरु का आह्वान करें।
”गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये”
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
अब गुरु की तस्वीर रख उनकी पूजा जल, फल, फूल, दूर्वा, अक्षत, धूप–दीप आदि से करें। अंत में आरती कर उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। यह व्रत सूर्योदय के बाद और चंन्द्र उदय तक किया जाता है।
गुरु पूर्णिमा का महत्त्व
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा का विधान है. दरअसल, गुरु की पूजा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उसकी कृपा से व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है. गुरु की महिमा अपरंपार है| गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती. गुरु को तो भगवान से भी ऊपर दर्जा दिया गया है. इस दिन गुरु की पूजा की जाती है| पुराने समय में गुरुकुल में रहने वाले विद्यार्थी गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से अपने गुरु की पूजा-अर्चना करते थे| गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु में आती है| इस मौसम को काफी अच्छा माना जाता है| इस दौरान न ज्यादा सर्दी होती है और न ही ज्यादा गर्मी| इस मौसम को अध्ययन के लिए उपयुक्त माना गया है| यही वजह है कि गुरु पूर्णिमा से लेकर अगले चार महीनों तक साधु-संत विचार-विमर्श करते हुए ज्ञान की बातें करते हैं|
हिन्दू धर्म में गुरु को भगवान से ऊपर दर्जा दिया गया है. गुरु के जरिए ही ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है| ऐसे में गुरु की पूजा भी भगवान की तरह ही होनी चाहिए| गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें| फिर घर के मंदिर में किसी चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं|
इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करें- ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’|
पूजा के बाद अपने गुरु या उनके फोटो की पूजा करें. अगर गुरु सामने ही हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं. उन्हें तिलक लगाएं और फूल अर्पण करें. उन्हें भोजन कराएं. इसके बाद दक्षिणा देकर पैर छूकर विदा करें|