प्रत्येक माह की दोनों शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के संध्याकाल को “प्रदोष” के रूप में जाना जाता है। इस अवसर पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत किया जाता है। जब प्रदोष व्रत गुरुवार के दिन आता है तो इसे ‘गुरु प्रदोष’ अथवा ‘बृहस्पति प्रदोष’ कहा जाता है। इस अवसर पर पूर्ण विधि-विधान से गुरु प्रदोष व्रत का पालन करने से आप विवाह में आने वाली बाधाओं से मुक्त हो सकते हैं। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान व चेतना की प्राप्ति होती है।
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