अचला सप्तमी व्रत कथा | Achala Saptami Vrat Katha

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप अचला सप्तमी व्रत कथा / Achala Saptami Vrat Katha Hindi PDF प्राप्त कर सकते हैं। अचला सप्तमी व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सूर्यदेव की पूजा – आराधना विधि – विधान से की जाती है।
अचला सप्तमी को सूर्य सप्तमी, रथ सप्तमी, माघ सप्तमी तथा सूर्य जयंती आदि नामों से भी जाना जाता है। सूर्यदेव को ऊर्जा तथा स्वाथ्य प्रदान करने वाला देव माना जाता है। यदि आप लम्बे समय से किसी भी प्रकार की स्वाथ्य सम्बन्धी समस्याओं से पीड़ित हैं, तो आपको निरंतर सूर्य देव की उपासना अवश्य करनी चाहिए।

अचला सप्तमी की व्रत कथा / Achala Saptami Ki Vrat Katha

पौराणिक कथा के अनुसार, एक महिला ने अपने पूरे जीवन में कभी कोई दान पुण्य नहीं किया था। वृद्धा अवस्था में उसे अपनी इस गलती का ज्ञान हुआ तो वह वशिष्ठ मुनि के पास गई। उसने मुनि को अपने मन की बात कह सुनाई। तब वशिष्ठ जी ने उसे रथ सप्तमी यानी अचला सप्तमी के व्रत के महत्व के बताया। साथ ही कहा कि उसे भी अचला सप्तमी का व्रत करना चाहिए। यह व्रत करने से पुण्य लाभ प्राप्त होता है। उन्होंने उस वृद्धा को व्रत की विधि भी बताई। माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि आने पर उस महिला ने अचला सप्तमी का व्रत रखा। बताई गई विधि के अनुसार ही सूर्य देव की पूजा की। जब उसका निधन हुआ तो अचला सप्तमी व्रत से प्राप्त पुण्य के प्रभाव उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई।

अचला सप्तमी की दूसरी व्रत कथा / Achala Saptami Second Vrat Katha

एक दूसरी कथा के अनुसार, एक राजा के पास अपना कोई उत्तराधिकारी नहीं था। संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी था। वह पूजा पाठ करता था और ऋषियों के बताए गए उपायों को भी करता था। वह हमेशा ईश्वर से संतान प्राप्ति का निवेदन करता था। उसकी मनोकामना पूरी हुई और उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ। कुछ समय के बाद उसका पुत्र बीमार हो गया। काफी इलाज कराने के बाद भी निरोग नहीं हुआ। तब उसे एक संत ने अचला सप्तमी का व्रत रखने तथा सूर्य देव की पूजा करने की सलाह दी। उस राजा ने माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी का व्रत रखा और विधि अनुसार पूजा की। उसके व्रत के प्रभाव से उसके पुत्र का स्वास्थ्य ठीक हो गया। बाद उसके पुत्र ने भी राज्य पर अच्छा शासन किया और लो​कप्रिय हुआ।
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